Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 117
________________ तह विदढ - मूढ - हियए पावं काउण दोग्गइं जंति ।। [१३४७] वच्चइ खणेण जीवो पित्ताणिल सेंभ- धाउ-खोभेहिं । उज्जमह मा विसीयह तरतम-जोगो इमो दुसहो ।। [१३४८] पंचिंदियत्तणं मानुसत्तणं आरियं जनं सुकुलं । साहु-समागम-सुणणं सद्दहणारोग्ग - पव्वज्जा ।। [१३४९] सूल-विस-अहि-विसुइया पाणिय-सत्थग्गि-संभमेहिं च । देहंतर-संकमणं करेइ जीवो मुहुत्तेणं ।। [ १३५०] जाव आउ सावसेसं जाव य थेवो वि अत्थि ववसाओ । ताव करे अप्प-हियं मा तप्पिहहा पुणो पच्छा ।। [१३५१] सुर-धनु-विज्जू-खण-दिट्ठ-नट्ठ- संझानुराग - सिमिण समं । इंति तु पण - आमयभंड व जल- भरियं ॥ [१३५२] इय जाव न चुक्कसि एरिसस्स खणभंगुरस्स देहस्स । उग्गं कट्ठे घोरं चरसु तवं नत्थि परिवाडि गोयमा ति ।। [१३५३] वास-सहस्सं पि जई काऊणं संजमं सुविउलं पि । अंते किलिट्ठ-भावो न विसुज्झइ कंडरिओ व्व ।। [१३५४] अप्पेण वि कालेणं केइ जहा गहिय-सील - सामण्णा । साहिंति नियय-कज्जं पोंडरिय-महा-रिसि व्व जहा ।। [१३५५ ] न य संसारंमि सुहं जाइ-जरा-मरण- दुक्ख-गहियस्स । जीवस्स अत्थि जम्हा तम्हा मोक्खो उवाए उ ।। [१३५६] सव्व पयारेहिं सव्वहा सव्व-भाव-भावंतरेहिं णं, गोयमा ! त्ति बेमि । गीयत्थ-विहारनाम-छवंअज्झयणं समत्तं • सत्तमं अज्झयणं-पच्छित्तसुतं [- पढमा चूलिया - एगंत निज्जरा -] [१३५७] भयवं! ता एय नाएणं जं भणियं आसि तुमं । जहा परिवाडिए तच्चं किं न अक्खसि पायच्छित्तं [१३५८] तत्थ मज्झ अवी हवइ गोयम! अज्झयणं-७ / चूलिका-१ o ० [दीपरत्नसागर संशोधितः] ० पच्छित्तं जइ तुमं तं आलंबस नवरं धम्म - वियारो ते कओ सुवियारिओ फुडो II [१३५९] न होइ एत्थ पच्छित्तं पुनरवि पुच्छेज्जा गोमा संदेहं जाव देहत्थं मिच्छत्तं ताव निच्छयं ॥ [१३६०] मिच्छत्तेण य अभिभूए तित्थयरस्स अवि भासियं । वयणं लंघित्तु विवरीयं वाएत्ताणं पविसंति ।। [१३६१] घोरतम तिमिर बहलंधयारं पायालं । [116] ? ।। ! | | | [३९-महानिसीहं]

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