Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 116
________________ लढुं पि न लभई धम्मं तं रिद्धिं कच्छभो जहा ।। [१३३०] दियहाइं दो व तिन्नि व अद्धाणं होइ जं तुलग्गेण । सव्वायरेण तस्स वि संवलयं लेइ पवसंतो || [१३३१] जो पुण दिह-पवासो चुलसीई जोणि-लक्ख-नियमेणं । तस्स तव-सील-मइयं संवलयं किं न चिंतेह ? || [१३३२] जह जह पहरे दियहे मासे संवच्छरे य बोलेंति । तह तह गोयम ! जाणसु ढुक्के आसन्नयं मरणं ।। [१३३३] जस्स न नज्जइ कालं न य वेला नेय दियह-परिमाणं | नाए वि नत्थि कोइ वि जगम्मि अजरामरो एत्थं ।। [१३३४] पावो पमाय-वसओ जीवो संसार-कज्जमज्जुत्तो । दक्खेहिं न निविण्णो सोक्खेहिं न गोयमा ! तिप्पे || [१३३५] जीवेण जाणि उ विसज्जियाणि जाई-सएस् देहाणि । थेवेहिं तओ सयलं पि तियणं होज्जा पडहत्थं ।। [१३३६] नह-दंत-मुद्ध-भमुहक्खि केस-जीवेण विप्पमुक्केसु । तेसु वि हवेज्ज कुल-सेल-मेरु-गिरि-सन्निभे कुडे ।। [१३३७] हिमवंत-मलय-मंदर दीवोदहि-धरणि-सरिस-रासीओ | अहिययरो आहारो जीवेणाहारिओ अनंतहत्तो ।। [१३३८] गुरु-दुक्ख-भरुक्कंतस्स अंसु-निवाएण जं जलं-गलियं । तं अगड-तलाय-नई-समुद्द-माईस् न वि होज्जा ।। [१३३९] आवीयं थण-छीरं सागर-सलिलाओ बयरं होज्जा । संसारंमि अनंते अविला-जोणीए एक्काए ।। [१३४०] सत्ताह-विवन्न-सुकुहिय-साण जोणीए मज्झ-देसंमि । किमियत्तण-केवलएण जाणि मक्काणि देहाणि ।। [१३४१] तेसिं सत्तम-पुढवीए सिद्धि-खेत्तं च जाव उक्कुरुडं । चोद्दस-रज्जुं लोगं अनंत-भागेण वि भरिज्जा ।। [१३४२ पत्ते य काम-भोगे कालं अनंतं इहं सउवभोगे । अपुव्वं चिय मन्नए जीवो तह वि य विसय-सोक्खं ।। अज्झयणं-६, उद्देसो [१३४३] जह कच्छुल्लो कच्छु कंडुयमाणो दुहं मुणइ सोक्खं । मोहाउरा मनुस्सा तह काम-दुहं सुहं बेंति ।। [१३४४] जाणंति अनुहंवति य जम्म-जरा-मरण-संभवे दुक्खे । न य विसएसु विरज्जंति गोयमा ! दोग्गई-गमन-पत्थिए जीवे ।। [१३४५] सव्व-गहाणं पभवो महागहो सव्वदोस-पायड्ढि । काम-गहो उ दुरप्पा तस्स वसं जे गया पाणी ।। [१३४६] जाणंति जहा भोग-इइढि-संपया सव्वमेव धम्मफलं । दीपरत्नसागर संशोधितः] [115] [३९-महानिसीह

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