Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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चक्कहरे महा-संघयणी भवित्ता णं निविण्ण-काम-भोगे जहोवइहें संपन्नं संजमं काऊण गोयमा ! से णं सुमइ-जीवे परिनिव्वुडेज्जा |
[६८०] तहा य जे भिक्खू वा भिक्खूणी वा परपासंडीणं पसंसं करेज्जा, जे या वि णं निण्हगाणं पसंसं करेज्जा, जे णं निण्हगाणं अनुकूलं भासेज्जा जे णं निण्हगाणं आययणं पविसेज्जा जे णं निहगाणं गंथ-सत्थ-पयक्खरं वा परूवेज्जा, जे णं निण्हगाणं संतिए काय-किलेसाइए तवे इ वा संजमे इ वा नाणे इ वा विण्णाणे इ वा सुए इ वा पंडिच्चे इ वा अभिमुह-मुद्ध-परिसा-मज्झ-गए सलाहेज्जा, से वि य णं परमाहम्मिएसुं उववज्जेज्जा जहा सुमती ।
T६८१] से भयवं तेणं समड जीवेणं तक्कालं समणत्तं अनपालियं तहा वि एवंविहेहिं नारयतिरिय-नरामर विचित्तोवाएहिं एवइयं संसाराहिंडणं ? गोयमा! णं जमागम-बाहाए लिंगरगहणं कीरइ तं दंभमेव केवलं सुदीहसंसारहेऊभूयं, नो णं तं परियायं संजमे लिक्खइ तेणेव य संजमं दुक्करं मन्ने अन्नं च समणत्ताए एसे य पढमे संजम-पए जं कसील-संसग्गी-निरिहरणं अहा णं नो निरिहरे ता संजममेव न ठाएज्जा ता तेणं सुमइणा तमेवायरियं तमेव पसंसियं तमेव उस्सप्पियं तमेव सलाहियं तमेवाणुट्ठियं ति। एयं च सुत्तमइक्कमित्ताणं एत्थं पए जहा सुमती तहा अन्नेसिमवि सुंदर-विउर-सुदंसण-सेहरणीलभद्दसभोमे य - खग्गधारी तेणग-समण-दुदंत-देवरक्खिंय-मुनि-नामादीणं को संखाणे करेज्जा ? ता एयमद्वं विइत्ताणं अज्झयणं-४, उद्देसो
कसीलसंभोगे सव्वहा वज्जणीए |
[६८२] से भयवं किं ते साहूणो तस्स णं नाइल-सड्ढगस्स छंदेणं कुसीले उयाहू आगमजुत्तीए ? गोयमा ! कहं सड्ढगस्स वरायस्सेरिसो सामत्थो ? जो णं तु सच्छंदत्ताए महानुभावाणं सुसाहूणं अवण्णवायं भासे ? तेणं सड्ढगेणं हरिवसं-तिलय-मरगयच्छविणो बावीसइ-धम्म-तित्थयरअरिहनेमि नामस्स सयासे वंदण-वत्तियाए गएणं आयारंगं अनंत-गमपज्जवेहिं पन्नविज्जमाणं समवधारियं । तत्थ य छत्तीसं आयारे पन्नविज्जंति । तेसिं च णं जे केइ साहू वा साहणी वा अन्नयरमायारमइक्कमेज्जा से णं गारत्थीहिं उवमेयं अहण्णहा समणुढे वा ऽऽयरेज्जा वा पन्नवेज्जा वा तओ णं अनंत-संसारी भवेज्जा ।
ता गोयमा ! जे णं तु मुहनंतगं अहिगं परिग्गहियं तस्स ताव पंचम महव्वयस्स भंगो, जे णं तु इत्थीए अंगोवंगाइं निज्झाइऊण नालोइयं तेणं त बंभचेरगत्ती विराहिया, तव्विराहणेणं जहा एगदेसदड्ढो पडो दड्ढो भण्णइ तहा चउत्थ-महव्वयं भग्गं | जेण य सहत्थेणुप्पाडिणादिण्णा भूई पडिसाहिया तेणं तु तइय-महव्वयं भग्गं । जे ण य अनुग्गओ वि सूरिओ उग्गओ भणिओ तस्स य बीयवयं भग्गं । जेण उ ण अफासुगोदगेण अच्छीणि पहोयाणि तहा अविहीए पहथंडिल्लाणं संकमणं कयं, बीयं कायं च अक्कंतं, वासा-कप्पस्स अंचलग्गेणं हरियं संघट्टियं, विज्जूए फूसिओ मुहनंतगेणं अजयणाए फडफडस्स वाउक्कायमुदीरियं, ते णं तु पढम-वयं भग्गं तब्भंगे पंचण्हं पि महव्वयाणं भंगो कओ, आगमजुत्तीए एते कुसीला साहुणो, जे उ णं उत्तरगुणाणं पि भंग न इडं किं पुण जं मूल-गुणाणं?
से भयवं ! ता एय नाएणं वियारिऊणं महव्वए घेतव्वे ? गोयमा ! इमे अढे समढे | से भयवं के णं अटेणं ? गोयमा ! सुमणे इ वा सुसावए इ वा, न तइयं भेयंतरं, अहवा जहोवइलैं सुसमणत्तमनुपालिया अहा णं जहोवइडं सुसावगत्तमनुपालिया, नो समणो सुसमणत्तमइयरेज्जा, नो [दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह
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