Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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णं जेणं वा तेणं वा सुएण वा विण्णाणेण वा गारविए भवेज्जा, से णं संजई-वग्गस्स चउत्थ-वय-खंडणसील भवेज्जा, से णं बहुरूवे भवेज्जा ।
[८२७] से भयवं कयरे णं से-बहु-रुवे-वुच्चइ ? जे णं ओसन्न-विहारीणं ओसन्ने उज्जयविहारीणं उज्जय-विहारी निद्धम्म-सबलाणं निद्धम्म-सबले बहरूवी रंग-गए चारणे इव नडे ।
[८२८] खणेण रामे खणेण लक्खणे खणेण दसगीव-रावणे खणेणं ।।
टप्पर-कण्ण-दंतुर-जरा-जुण्ण-गत्ते पंडर-केस-बहु-पवंच भरिए विदूसगे ।। [८२९] खणेणं तिरियं च जाती वानर-हनुमंत-केसरी ।
जह णं एस गोयमा ! तहा णं से बहुरूवे
[८३०] एवं गोयमा! जे णं असई कयाई केई चुक्क-खलिएणं पव्वावेज्जा, से णं दूरद्धाण ववहिए करेज्जा से णं सन्निहिए नो धरेज्जा से णं आयरेणं नो आलवेज्जा, से णं भंडमत्तोवगरणेणं आयरेणं नो पडिलाहावेज्जा, से णं तस्स गंथसत्थं नो उद्दिसेज्जा से णं तस्स गंथ-सत्यं नो अनुजाणेज्जा, से णं तस्स सद्धिं गुज्झ-रहस्सं वा अगुज्झ-रहस्सं वा नो मंतेज्जा । एवं गोयमा ! जे केई एय दोसविप्पमक्के से णं पव्वावेज्जा | तहा णं गोयमा! मिच्छ-देसप्पन्नं अनारियं नो पव्वावेज्जा । एवं वेसा-स्यं नो पव्वावेज्जा एवं गणिगं नो पव्वावेज्जा, एवं चक्खु-विगलं एवं विगप्पिय-कर-चरण एवं छिन्न-कण्णनासोढं एवं कुट्ठ-वाहीए गलमाण-सडहडतं एवं पंगुं अयंगमं मूयं बहिरं, एवं अच्चुक्कड-कसायं एवं बहु पासंड-संसहूं, एवं घन-राग-दोस-मोह-मिच्छत्त-मल-खवलियं एवं उज्झिय उत्तयं, एवं पोराण निक्खुडं एवं जिनालगाई बहु देव-बलीकरण-भोइयं चक्कयरं, एवं नड-नट्ट-छत्त-चारणं, एवं सुयजड्डं चरण-करण-जड्डं जड्डकायं नो पव्वावेज्जा । एवं तु जाव णं नाम-हीनं थाम-हीनं कुल-हीनं बुद्धि-हीनं पण्णा-हीनं गामउडमयहरं वा गामउड-मयहरसुयं वा अन्नयरं वा निंदियाहम-हिन-जाइयं वा-अविण्णाय कुल-सहावं वा गोयमा ! सव्वहा नो दिक्खे नो पव्वावेज्जा ।
___एएसिं तुं पयाणं अन्नयर-पए खलेज्जा जो सहसा-देसूण-पुव्वकोडी-तवेणं गोयमा ! सुज्झेज्ज वा न वा वि ।
[८३१] एवं गच्छववत्थं तह त्ति पालेत्तु तहेव जं जहा भणियं । अज्झयणं-५, उद्देसो
रय-मल-किलेस मुक्के गोयम ! मोक्खं गएऽनंतं [८३२] गच्छंति गमिस्संति य ससुरासुर-जग-नमंसिए वीरे ।
भुयणेक्क-पायड-जसे जह भणिय-गुणट्ठिए गणिणो ।
[८३३] से भयवं ! जे णं केइ अमणिय-समय-सब्भावे होत्था विहिए इ वा अविहिए इ वा, कस्स य गच्छायारस्स य मंडलि-धम्मस्स वा छत्तीसइविहस्स णं सप्पभेय-नाण-दंसण-चरित्त-तववीरियायारस्स वा मनसा वा वायाए वा कहिं चि अन्नयरे ठाणे केई गच्छाहिवई आयरिए इ वा, अंतो विसुद्ध परिणामे वि होत्था-णं असई चुक्केज्ज वा खलेज्ज वा परूवेमाणे वा अनुढेमाणे वा, से णं आराहगे उयाहू अनाराहगे? गोयमा! अनाराहगे, से भयवं! केणं अटेणं एवं वुच्चइ जाव अनाराहगे ?
गोयमा! णं इमे दुवालसंगे सुय-नाणे अणप्पवसिए अनाइ-निहणे सब्भूयत्थ-पसाहगे अनाइसंसिद्धे से णं देविंद-वंद-वंदाणं अतुल-बल-वीरिएसरिय-सत्त-परक्कम-महापुरिसायार कंति-दित्ति-लावण्णरूव-सोहग्गाइ-सयल कला-कलाव-विच्छड्ड मंडियाणं अनंत-नाणीयं सयंसंबुद्धाणं जिन-वराणं अनाइसिद्धाणं दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह
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