Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text ________________
अज्झयणं-६, उद्देसो
जावज्जीवं तिविहेणं तमनुभावेण सा गई ।। [१०५१] नवरं नियम-विहूणस्स परदार-गमनस्स उ । अनियत्तस्स भवे बंधं निवत्तिए महाफलं ।। [१०५२] सुथेवाणं पि निवित्तिं जो मनसा वि य विराहए । सो मओ दोग्गइं गच्छे मेघमाला जहज्जिया || [१०५३] मेघमालज्जियं नाहं जाणिमो भुवन- बंधवा | मनसावि अनुनिवित्तिं जा खंडिय दोग्गइं गया ।। [१०५४] वासुपुज्जस्स तित्थम्मि भोला कालगच्छवी । मेघमालज्जिया आसि गोयमा ! मन दुब्बला ।। [ १०५५] सा नियममागास पक्खंदा काउं भिक्खाए निग्गया । अन्नओ नत्थि नीसारं मंदिरोवरि संठिया ||
[१०५६] आसन्नं मंदिरं अन्नं लंधित्ता गंतुमिच्छुगा । मनसाभिनंदेवं जा ताव पज्जलिया दुवे || [१०५७] नियम-भंगं तय सुहुमं तीए तत्थ न निंदियं । तं नियम-भंग-दोसेणं इज्झेत्ता पढमियं गया || [१०५८] एयं नाउं सुहुमं पि नियमं मा विराहिह । जे छिज्जा अक्खयं सोक्खं अनंतं च अनोवमं ।। [१०५९] तव-संजमे वसुं च नियमो दंड-नायगो । तमेव खंडेमाणस्स न वए नो व संजमे ॥ [१०६०] आजम्मेणं तु जं पावं बंधेज्जा मच्छबंधगो । वय-भंग-काउमाणस्स तं चेद्वगुणं मुणे || [१०६१] सय-सहस्स-स-लद्धीए जोवसामित्तु निक्खमे । वयं नियममखंडेंतो जं सो तं पुन्नमज्जिने ॥ [१०६२] पवित्ता य निवित्ता य गारत्थी संजमे तवे । जणुट्ठिया तयं लाभं जाव दिक्खा न गिव्हिया ।। [१०६३] साहु-साहुणी-वग्गेणं विण्णायव्वमिह गोयमा जेसिं मोत्तूण ऊसासं नीसासं नानुजाणियं ।।
[१०६४] तमवि जयणाए अणुण्णायं वि जयणाए न सव्वहा । अजयणाए ऊससंतस्स कओ धम्मो कओ तवो [१०६५] भयवं! जावइयं दिट्ठ तावइयं कहनुपालिया । जे भवे अवीय-परमत्थे किच्चाकिच्चमयाणगे || [१०६६] एगंतेण हियं वयणं गोयमा
नो बलमोडीए कारेंति हत्थे धेत्तूण जंतुणो ।। [१०६७] तित्थयर-भासिए वयणे जे तह त्ति अनुपालिया ।
[97]
[दीपरत्नसागर संशोधितः]
! I
! दिस्संती केवली ।
? ।।
[३९-महानिसीहं]
Loading... Page Navigation 1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153