Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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[१२४६] तवसा निद्दड्ढ-कम्मंस ! वम्मह वइर वियारण |
चउकसाय निट्ठवण सव्व जगजीववच्छल ।। [१२४७] घोरंधयार-मिच्छत्त- तिमिस-तम-तिमिर-नासण ।
लोगालोग-पगासगर मोह-वइरिनिसुंभण ।। [१२४८] दुरुज्झिय-राग-दोस मोह-मोस सोग संत सोम सिवंकर ।
अतुलिय बल विरिय माहप्पय तिहुयणेक्क महायस ।। [१२४९] निरुवमरूव अनन्नसम सासयसह-मक्ख-दायग |
सव्वलक्खणसंपन्न तियणलच्छिविभूसिय ।। [१२५०] भयवं! परिवाडीए सव्वं जं किंचि कीरई । अथक्के हंडि-डेणं कज्जं तं कत्थ लब्भइ
? || [१२५१] सम्मइंसणमेगम्मि बितियं जम्मे अणुव्वए |
तइयं सामाइयं जम्मे चउत्थ पोसहं करे ।। [१२५२] दुद्धरं पंचमे बंभं छठे सचित्त-वज्जणं ।
एवं सत्तट्ठ-नव-दसमे जम्मे उद्दिट्ठमाइयं ।। [१२५३] चेच्चेक्कारसमे जम्मे समण-तुल्ल-गुणो भवे । एयाए परिवाडिए संजयं किं न अक्खसि
? || [१२५४] जं पुणो सोऊण मइविगलो बालयणो केसरिस्स व ।।
सदं गय-जुव तसिउं नासे-दिसोदिसि ।। [१२५५] तं एरिस-संजमं नाह ! सुदुल्ललिया सुकुमालया | सोऊणं पि नेच्छंति तणुट्ठीसुं कहं पुन ।
? || [१२५६] गोयम! तित्थंकरे मोत्तं अन्नो दुल्ललिओ जगे ।
जइ अत्थि कोइ ता भणउ अह णं सुकुमालओ ।। [१२५७] जेणं गब्भट्ठाणंमि देविंदो अमयं अंगुट्ठयं कयं ।
आहारं देइ भत्तीए संथवं सययं करे ।। [१२५८ देव-लोग-चए संते कम्मासेणं जहिं धरे ।
अभिजाहिंति तहिं सययं हीरण्ण-वुट्ठी य वरिस्सइ ।। [१२५९] गब्भावन्नाण तद्देसे ईति-रोगा य सत्तुणो ।
अज्झयणं-६, उद्देसो
अनुभावेण खयं जंति जाय-मेत्ताण तक्खणे ।। [१२६०] आगंपियासणा चउरो देव-संघा महीधरे ।
अभिसेयं सविड़ढीए काउंस-ट्ठामे गया ।। [१२६१] अहो लावण्णं कंती दित्ती रूवं अनोवमं । जिणाणं जारिसं पाय-अंगुढग्गं न तं इहं ।। [१२६२] सव्वेसु देव-लोगेसु सव्व-देवाण मेलियं । कोडाकोडिगणं काउं जड़ वि उ ण्हाणिज्जए ||
दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह
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