Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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अज्झयणं-६, उद्देसो
अगीयत्थेण समं एक्कं खणद्धं पि न संवसे || [१०८५] विणा वि तंत- मंतेहिं घोर - दिट्ठीविसं अहिं । डसंतं पि समल्लीया नागीयत्थं कुसीलाहमं ।। [१०८६] विसं खाएज्ज हालाहलं तं किर मारेइ तक्खणं । न करेऽगीयत्थ-संसग्गिं विढवे लक्खं पि जइ तहिं ।। [१०८७] सीहं वग्घं पिसायं वा घोर रूवं भयंकरं । उगिलमाणं पि लीएज्जा न कुसीलमगीयत्थं तहा ।। [१०८८] सत्तजम्मंतरं सत्तुं अवि मन्नेज्जा सहोयरं ।
वय - नियमं जो विराहेज्जा जनयं पिक्खे तयं रिउं ॥ [१०८९] वरं पविट्ठो जलियं हुयासणं न या वि नियमं सुहुमं विराहियं । वरं हि मच्चू सुविसुद्ध - कम्मुणो न यावि नियमं भंतूण जीवियं । । [१०९०] अगीयत्थत्तदोसेणं गोयमा ! ईसरेण उ ।
जं पत्तं तं निसामित्ता लहुं गीयत्थो मुनी भवे ।। [१०९१] से भयवं नो वियाणेहं ईसरो को वि मुनिवरो किं वा अगीयत्थ-दोसेणं पत्तं तेण [१०९२] चउवीसिगाए अन्नाए एत्थ भरहम्मि गोयमा पढमे तित्थंकरे जड्या विही- पुव्वेण निव्वुडे ।। [१०९३] तइया नेव्वाण- महिमाए कंत-रूवे सुरासुरे । निवयंते उप्पयंते दडुं पच्चतवासिओ ।।
[१०९४] अहो! अच्छेरयं अज्जं मच्चलोयम्मि पेच्छिमो ।
न इंदजालं सुमिणं वा वि दिट्ठे कत्थई पुणो ।। [१०९५] एवं वीहाऽपोहाए पुव्वं जातिं सरित्तु सो ।
मोहं गंतूण खणमेकं मारुया ssसासिओ पुणो ।। [१०९६] थर-थर-थरस्स कंपतो निंदिउं गरहिउं चिरं । अत्ताणं गोयमा ! धणियं सामन्नं गहिउमुज्जओ ॥ [१०९७] अह पंचमुट्ठियं लोयं जावाssढवइ महायसो । सविनयं देवया तस्स रयहरणं ताव ढोयई ||
? कहेहि णे ।।
[१०९८] उग्गं कट्टं तवच्चरणं तस्स दट्ठूण ईसरो । लोओ पूयं करेमाणो जाव उ गंतूण पुच्छई ।। [१०९९] केण तं दिक्खिओ कत्थ उप्पन्नो को कुलो तव । सुत्तत्थं कस्स पामूले सासियं हो समज्जियं ॥ [११००] | सो पच्चेगबुद्धो वा सव्वं तस्स वि वागरे । जाई कुलं दिक्खा सुत्तं अत्थ जह य समज्जियं ।। [११०१] तं सोऊण अहन्नो सो इमं चिंतेइ गोयमा ।
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[दीपरत्नसागर संशोधितः ]
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[३९-महानिसीहं]
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