Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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जाऽकाम-निज्जरा जाया तीए देवेसुव्वज्जिओ ।। [११३६] तओ इहइं नरीसत्तं लभ्रूणं सत्तमि गओ ।
एवं नरय-तिरिच्छेसुं कुच्छिय-मनुएसु ईसरो ।। [११३७] गोयम! सुईरं परिब्भमिउं घोर-दुक्ख-सुदुक्खिओ ।
संपइ गोसालओ जाओ एस स वेवीसरज्जिओ ।। [११३८] तम्हा एयं वियाणित्ता अचिरा गीयत्थे मुनी ।
भवेज्जा विदिय परमत्थे सारासारे परिन्नए || [११३९] सारासारमयाणित्ता अगीयत्थत्त-दोसओ ।
वय-मेत्तेणा वि रज्जाए पावगं जं समज्जियं ।। [११४०] तेणं तीए अहण्णाए जा जा होही नियंतणा |
नारय-तिरिय-कुमानुस्से तं सोच्चा को धिइं लभे ।।
[११४१] से भयवं! का उण सा रज्जज्जिया? किंवा तीए अगीयत्थ-अत्त-दोसेणं वाया-मेत्तेणं पि पावं कम्मं समज्जियं, जस्स णं विवाग ऽयं सोऊणं नो धिइं लभेज्जा ? गोयमा ! णं इहेव भारहे वासे भद्दो नाम आयरिओ अहेसि, तस्स य पंच सए साहूणं महानुभागाणं दुवालस सए निग्गंथीणं । तत्थ य गच्छे चउत्थरसियं ओसावणं तिदंडोऽचित्तं च कढिओदगं विप्पमोत्तूणं चउत्थं न परिभुज्जई । अन्नया रज्जा नामाए अज्जियाए पुव्वकय-असुह-पाव-कम्मोदएण सरीरंग कुट्ठ-वाहीए परिसडिऊणं किमिएहिं सुमद्दिसिउमारलं, अह अन्नया परिगलंत-पूइ-रुहिरतनूं तं रज्जज्जियं पासिया ताओ संजईओ भणंति, जहा हला हला ! दुक्करकारिगे किमेयं ? ति |
ताहे गोयमा ! पडिभणियं तीए महापावकम्माए भग्गलक्खण-जम्माए रज्जज्जियाए जहाएएण फासुग-पानगेणं आविज्जमाणेणं विनर्से मे सरीरगं ति, जावेयं पलवे ताव णं संखुहियं हिययं गोयमा! सव्व-संजइ-समूहस्स जहा णं विवज्जामो फासुगपानगं ति तओ एगाए तत्थ चिंतियं संजतीए जहा णंजइ संपयं चेव ममेयं सरीरगं एगनिमिसब्भंतरेव पडिसडिऊणं खंडखंडेहिं परिसडेज्जा, तहावि अफासुगोदगं एत्थ जम्मे न परिभुंजामि, फासुगोदगं न परिहरामि अन्नं च-किं सच्चमेयं जं फासुगोदगेणं इमीए सरीरगं विनटुं? सव्वहा न सच्चमेयं ! जओ णं पुव्वकय-असुह-पाव-कम्मोदएणं सव्वमेवविहं हवइ त्ति । सुट्ट्यरं चिंति पयत्ता जहा णं जहा
भो! पेच्छ पेच्छ अन्नाण-दोसोवहयाए दढ-मूढ-हिययाए विगय लज्जाए इमीए महापावकम्माए संसार-घोर-दुक्ख-दायगं केरिसं दुहृवयणं गिराइयं ? जं मम कण्ण-विवरेसुं पि नो अज्झयणं-६, उद्देसो
पविसेज्ज त्ति । जओ भवंतर-कएणं असुह-पाव-कम्मोदएणं जं किंचि दारिद्द-दुक्ख-दोहग्ग-अयसब्भक्खाण कुट्ठाइ-वाहि-किलेस-सन्निवायं देहम्मि संभवइ न अन्नह त्ति जे णं तु एरिसमागमे पढिज्जइ तं जहा :
[११४२] को देइ कस्स दिज्जइ विवियं को हरइ हीरए कस्स |
सयमप्पणो विढत्तं अल्लियइ दहं पि सोक्खं पि ।।
[११४३ चिंतमाणीए चेव उप्पन्नं केवलं नाणं, कया य देवेहिं केवलिमहिमा, केवलिणा वि नर-सुरासुराणं पनासियं संसय-तम-पडलं अज्जियाणं च, तओ भत्तिब्भरनिब्भराए पणाम-पुव्वं पुट्ठो केवली रज्जाए जहा भयवं ! किमट्ठमहं एमहंताणं महा-वाहि-वेयणाणं भायणं संवत्ता ? ताहे गोयमा ! सजल[दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह
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