Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 99
________________ सिंदा देव-गणा तस्स पाए पणमंति हरिसिया ।। [१०६८] जे अविइय परमत्थे किच्चाकिच्चमजाणगे । अंधो अंधी एतेसिं समं जल-थलं गड्ड-टिक्कुरं ।। [१०६९] गीयत्थो य विहारो बीओ गीयत्थो-मीसओ । समणुण्णाओ सुसाहूणं नत्थि तइयं वियप्पणं ।। [१०७०] गीयत्थे जे सुसंविग्गे अनालसी दढव्वए । अखलिय-चारित्ते सययं राग-दोस-विवज्जिए || [१०७१] निद्वविय अट्ठमय-ढाणे समिय-कसाए जिइंदिए । विहरेज्जा तेसिं सद्धिं तु ते छउमत्थे वि केवली ।। [१०७२] सुहमस्स पढवि-जीवस्स जत्थेगस्स किलामणा । अप्पारंभं तयं बैंति गोयमा ! सव्व-केवली ।। [१०७३] सुहमस्स पुढवि-जीवस्स वावत्ती जत्थ संभवे । महारंभं तयं बेंति गोयमा ! सव्वे वि केवली ।। [१०७४] पुढवि-काइय एक्कं दरमलेंतस्स गोयमा असाय-कम्म-बंधो हु दुव्विमोक्खे ससल्लिए ।। [१०७५] एवं च आऊ-तेऊ वाऊ-तह वणस्सती | तसकाय-मेहुणे तह य चिक्कणं चिणइ पावगं ।। [१०७६] तम्हा मेहण-संकप्पं पुढवादीण विराहणं । जावज्जीवं दुरंत-फलं तिविहं तिविहेण वज्जए ।। [१०७७] ता जे अविदिय-परमत्थे गोयमा ! नो य जे मुने । तम्हा ते विवज्जेज्जा दोग्गई-पंथ-दायगे || [१०७८] गीयत्थस्स उ वयणेणं विसं हलाहलं पि वा । निव्विकप्पो पभक्खेज्जा तक्खणा जं समुद्दवे ।। [१०७९] परमत्थओ विसं तोसं अमयरसायणं खु तं । निव्विकप्पं न संसारे मओ वि सो अमयस्समो || [१०८०] अगीयत्थस्स वयणेणं अमयं पि न घोट्टए । जेण अयरामरे हविया जह किलाणो मरिज्जिया ।। अज्झयणं-६, उद्देसो [१०८१] परमत्थओ न तं अमयं विसं तं हलाहलं । न तेन अयरामरो होज्जा तक्खणा निहणं वए || [१०८२] अगीयत्थ-कुसीलेहिं संगं तिविहेण वज्जए । मोक्ख-मग्गस्सिमे विग्घे पहम्मी तेणगे जहा ।। [१०८३] पज्जलियं हुयवहं दहूं नीसंको तत्थ पविसिउँ । अत्ताणं पि डहेज्जासि नो कुसीलं समल्लिए ।। [१०८४] वास-लक्खं पि सूलीए संभिन्नो अच्छिया सहं । दीपरत्नसागर संशोधितः] [98] [३९-महानिसीह

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