Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 93
________________ संपयं बोहिओ सो वि दुम्मुहेण जहा तुमं ।। [८७८] धम्म लोगस्स साहेसि अत्त-कज्जम्मि मुज्झसि । नूनं विक्केणुयं धम्मं जं सयं नाणुचेट्टसि ।। [८७९] एवं सो वयणं सोच्चा दुम्मुहस्स सुभासियं । थरथरस्स कंपंतो निदिउं गरहिउँ चिरं ।। [८८०] हा ! हा ! हा ! अकज्जं मे भट्ठ-सीलेण किं कयं । जेणं तु मुत्तोऽघसरे गुंडिओऽसुइ किमी जहा || [८८१] धी धी धी ! अहन्नेणं पेच्छ जं मेऽनचिट्ठियं । जच्च-कंचण-समऽत्ताणं असुइ-सरिसं मए कयं ।। [८८२] खण-भंगुरस्स देहस्स जा विवत्ती णं मे भवे । ता तित्थयरस्स पामूलं पायच्छित्तं चरामिऽहं ।। [८८३] एस मा-गच्छती एत्थं चिटुंताणेव गोयमा घोरं चरिऊणं पच्छित्तं संविग्गोऽम्हेहिं भासिउं ।। [८८४] घोर-वीर-तवं काउं असुहं-कम्म खवेत्तु य । सुक्कज्झाणे समारुहिउं केवलं पप्प सिज्झिही ।। [८८५] ता गोयममेय-नाएणं बहु-उवाए वियारिया । लिंगं गुरुस्स अप्पेउं नंदिसेनेणं जहा कयं ।। [८८६] उस्सग्गं ता तुमं बुज्झ सिद्धतेयं जहट्ठियं । तवंतरा उदयं तस्स महंतं आसि गोयमा [८८७] तहा वि जा विसए उइण्णे तवे घोरं महातवं । अवगुणं तेणमनुचिण्णं तो वी विसए न निज्जिए || [८८८] ताहे विस-भक्खणं पडणं अनसनं तेन इच्छियं । एयं पि चारण-समणेहिं बे वारा जाव सेहिओ || [८८९] ताव य गुरुस्स रयहरणं अप्पियण्णं देसंतरं गओ । एते ते गोयमोवाए सुय-निबद्धे वियाणिए ।। [८९०] जाव गुरुणो न रयहरणं पव्वज्जा य न अल्लिया । तावाकज्जं न कायव्वं लिंगमवि जिन-देसियं ।। ! || अज्झयणं-६, उद्देसो [८९१] अन्नत्थ न उज्झियव्वं गुरुणो मोत्तूण अंजलिं । जइ सो उवसासिउं सक्को गुरू ता उवसासइ ।। [८९२] अह अन्नो उवसासि सक्को तो वि तस्स कहिज्जइ । गुरुणा वि य तं ण अन्नस्स गिरावेयव्वं कयाइ वि || [८९३] जो भविया वीइय परमत्थो जग-ट्ठिय-वियाणगो । एयाइं तु पयाइं जो गोयमा ! णं विडंबए || [८९४] माया-पवंच-दंभेणं सो भमिही आसडो जहा | दीपरत्नसागर संशोधितः] [92] [३९-महानिसीह

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