Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 75
________________ I अज्झयणं-५, उद्देसो [७९२] भट्ठायारो सूरी भट्ठायारानुवेक्खओ सूरि । उम्मग्ग- ठिओ सूरी तिन्नि वि मग्गं पणासेंति [७९३] उम्मग्गए-ठिए सूरिम्मि निच्छियं भव्व - सत्त-संघाए । जम्हा तं मग्गमनुसरति तम्हा न तं जुत्तं [७९४] एक्कं पि जो दुहत्तं सत्तं परिबोहिउं ठवे मग्गे । ससुरासुरम्म वि जगे तेणेहं घोसियं अमाधायं [७९५] भूए अत्थि भविस्संति केई जग-वंदनीय -कम- जुगले । जेसिं परहिय-करणेक्क - बद्ध-लक्खाण वोलिही कालं [७९६] भूए अनाइ - कालेण केई होहिंति गोयमा नामग्गहणेण वि जेसिं होज्ज नियमेणं पच्छित्तं [७९७] एयं गच्छ-ववत्थं दुप्पसहानंतरं तु जो खंडे । तं गोयम जाण गणिं निच्छयओ ऽनंत - संसारी [७९८] जं सयल-जीव जग-मंगलेक्क कल्लाण- परम कल्लाणे । सिद्धि-पहे वोच्छिन्ने पच्छित्तं होइ तं गणिणो [७९९] तम्हा गणिणा सम-सत्तु मित्त- पक्खेण परहिय-रएणं । कल्लाण-कंखुणा अप्पणो य आणा न लंघेया [ ८०० ] एवं मेरा णं लंघेयव्व त्ति, ! सूरि । एयं गच्छ ववत्थं लंघेत्तु ति-गारवेहिं पडिबद्धे संखाईए गणिणो अज्ज वि बोहिं न पाविंति [८०१] न लभेहिंति य अन्ने अनंत हुत्तो वि परिभमंतेत्थं । चउ-गइ-भव-संसारे चेद्वेज्जा चिरं सुदुक्खत्ते [८०२] चोद्दस-रज्जू-लोगे गोयम ! वालग्ग - कोडिमेत्तं पि । तंत्थि एस जत्थ अनंत-मरणे न संपत्ति [८०३] चुलसीइ-जोणि- लक्खे सा जोणी नत्थि गोयमा जत्त न अनंतहुत्तो सव्वे जीवा समुप्पन्ना [८०४] सूईहिं अग्गि-वन्नाहिं संभिन्नस्स निरंतरं । जावइयं गोयमा ! दुक्खं गभे अट्ठ-गुणं तयं [८०५ ] गब्भाओ निप्फिडंतस्स जोणी- जंत-निपीलणे । कोडी-गुणं यं दुक्खं कोडाकोडि-गुणं पि वा [८०६] जायमाणाण जं दुक्खं मरमाणाण जंतूणं । णं दुक्ख विवाणं जाएं न सरंति अत्ताणिं [८०७] नाणाविहासु जोणीसु परिभमंतेहिं गोयमा दुक्ख विवाणं संभरिएण न जिव्वए [74] [ दीपरत्नसागर संशोधितः ] I ! इहई | || || || || || || || || || || || || || || || || [३९-महानिसीहं]Page Navigation
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