Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 46
________________ जम्हा तम्हा उ उभयं पि अनुढेज्जेत्थ नु बुज्झसी [५२२] विनिओगमेवं तं तेसिं भावत्थवासंभवो तहा भावच्चणा य उत्तमयं दसण्णभद्देण पायडे । जहेव दसण्णभद्देणं उयाहरणं तहेव य ।। [५२३] चक्कहर-भानु-ससि-दत्त दमगादीहिं विनिद्दिसे पुव्वं ते गोयमा ! ताव जं सुरिंदेहिं भत्तिओ अज्झयणं-३, उद्देसो [५२४] सव्विढिए अनन्न-समे पूया-सक्कारे कए ता किं तं सव्व-सावज्जं तिविहं विरएहि ऽनुट्ठियं ।। [५२५] उयाहू सव्व-थामेसुं सव्वहा अविरएसु उ ? | ननु भयवं सुरवरिंदेहिं सव्व-थामेसु सव्वहा [५२६] अविरएहिं सुभत्तीए पूया-सक्कारे कए ता जइ एवं तओ बुज्झ गोयमा ! नीसंसयं । देस-विरय-अविरयाणं तु विनिओगमुभयत्थ वि || [५२७] सयमेव सव्व-तित्थंकरहिं जं गोयमा ! समायरियं | कसिणट्ठ-कम्मक्खय-कारयं त् भावत्थयमणुढे [५२८] भव-भीओ गमागम-जंत् फरिसणाइ-पमद्दणं जत्थ । स-पर-हिओवरयाणं न मनं पि पवत्तए तत्थ [५२९] ता स-परहिओवरएहिं सव्वहा sनेसियव्वं विसेसं । जं परमसारभूयं विसेसवंतं च अनुढेयं [५३० ता परमसार-भूयं विसेसवंतं च साहुवग्गस्स एगंत-हियं पत्थं सुहावहं पयडपरमत्थं [तं जहा ] || [५३१] मेरुत्तुंगे मणि-मंडिएक्क कंचणगए परमरम्मे नयन-मनाऽऽनंदयरे पभूय-विण्णाण-साइसए ।। [५३२] सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-सुलट्ठ छंद-सुविभत्त-मुनि-वेसे बहुसिंघयण्ण-घंटा धयाउले पवरतोरण-सनाहे [१३३] सुविसाल-सुवित्थिन्ने पए पए पेच्छियव्व-सिरीए मघ-मघ-मत-डज्झंत अगल-कप्पूर-चंदणामोए [५३४] बहुविह-विचित्त-बहुपुप्फमाइ पूयारुहे सुपूए य निच्च-पणच्चिर नाडय-सयाउले महर-मुख-सद्दाले [५३५] कुदंत-रास-जन-सय-समाउले जिन-कहा-खित्त-चित्ते । पकहंत-कहग-नच्चंत छत्त-गंधव्व-तूर-निग्घोसे [५३६] एमादि-गुणोवेए पए पए सव्वेमेइणी वढे निय-भुय-विढत्त-पुन्नज्जिएण नायागएण अत्थेण [५३७] कंचन-मणिसोमाणे थंभ-सहस्सूसिए सुवण्णतले - - - दीपरत्नसागर संशोधितः] [45] [३९-महानिसीह

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