Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 58
________________ लोगवित्थरभावना, धम्मं सुयक्खायं सुपन्नत्तं तित्थयरेहिं ति भावना, तत्तचिंता भावना, बोहि-सुदुल्लभाजम्मंतर-कोडीहिं वि त्ति भावणा । एवमादि-थाणंतरेसुं जे पमायं कुज्जा, से णं चारित्त-कुसिले नेए । [६४५] तहा तव-कुसीले दुविहे नेए, बज्झ-तव-कुसीले, अब्भिंतरतवकुसीले य तत्थ जे केई विचित्त-अनसन, ऊनोदरिया, वित्ती- संखेवण, रस-परिच्चाय, कायकिलेस, संलीणयाए त्ति छट्ठाणेसुं न उज्जमेज्जा से णं बज्झ-तव-कुसीले । तहा जे केइ विचित्तपच्छित्त-विनय-वेयावच्च-सज्झाय-झाणउसग्गम्मि चेएसुं छट्ठाणेसुं न उज्जमेज्जा से णं अब्भिंतर-तव-कुसीले । [६४६] तह पडिमाओ बारस तं जहा : [६४७] मासादी सत्तंता एग दुग ति-सत्तराइ दिना नि अहराति एगराती भिक्खू परिमाणं बारसगं ।। [६४८] तह अभिग्गहा दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ । तत्थ दव्वे कुम्मासाइयं दव्वं अज्झयणं-३, उद्देसो गहेयव्वं, खेत्तओ गामे बहिं वा गामस्स, कालओ पढमपोरिसिमाईसु, भावओ कोहमाइसंपन्नो जं देहि इमं गहिस्सामि । एवं उत्तर- गुणा संखेवओ सम्मत्ता । सम्मत्तो य संखेवेणं चरित्तायारो । तवायारो वि संखेवेणेहंतर-गओ । तहा विरियायारो । एएस चेव जा अहाणी, एएसुं पंचसु आयाराइयारेसुं जं आउट्टियाए दप्पओ पमायओ कप्पेण वा अजयणाए वा जयणाए वा पडिसेवियं, तं तहेवालोइत्ताणं जं मग्ग- विउ-गुरुउवइसंति तं तहा पायच्छित्तं नानुचरेइ । एवं अट्ठारसण्हं सीलंग - सहस्साणं जं जत्थ पए पमत्ते भवेज्जा, से णं तेणं तेणं पमाय-दोसेणं कुसीले नेए । [६४९] तहा ओसन्नेसु जाणे नित्थं लिहीज्झइ । पासत्थे नाणमादिणं सच्छंदे उस्सुत्तुमग्गगामी सबले नेत्थं लिहिज्जंति गंथ - वित्थरभयाओ । भगवया उण एत्थं पत्थावे कुसीलादी महया पबंधेणं पन्नविए एत्थं च जा जा कत्थइ अन्नन्नवायणा, सा सुमुणिय- समय-सारेहिंतो पओसेयव्वा जओ मूलादरिसे चेव बहुं गंथं विप्पणट्टं । तहिं च जत्थ संबंधानुलग्गं गंथं संबज्झइ तत्थ तत्थ बहुएहिं सुयहरेहिं सम्मिलिऊणं संगोवंग दुवालसंगाओ सुय-समुद्दाओ अन्न- मन्न- अंग-उवंग-सुयक्खंधअज्झयणुद्देसगाण समुच्चिणिऊणं किंचि किंचि संबज्झमाणं एत्थं लिहियं, न उण सकव्वं कयं ति । [६५०] पंचेए सुमहा-पावे जे न वज्जेज्ज गोयमा ! | संलावादीहिं कुसीलादी भमिही सो सुमती जहा ।। [६५१] भव-काय-ट्ठितीए संसारे घोर - दुक्ख समोत्थओ अलभंतो दसविहे धम्मे बोहिमहिंसाइ - लक्खणे || [६५२] एत्थं तु किर-दिट्ठतं संसग्गी-गुण-दोसओ रिसि - भिल्ला समवासे णं निप्फन्नं गोयमा [६५३] तम्हा कुसीलसंसग्गी सव्वोवाएहिं गोयमा वज्जेज्जा य हियाकंखी अंडज - दिट्ठत-जाणगे ।। • तइयं अज्झयणं समत्तं • चउत्थमज्झयणं - कुसीलसंसग्गी • [दीपरत्नसागर संशोधितः ] ० [57] | I ! | ! | [३९-महानिसीहं]Page Navigation
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