Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 60
________________ जगस्स अलंघणिज्जा तित्थयर-वाणी अन्नं च जाव एतेहिं समं गम्मइ ताव णं चिट्ठउ ताव दरिसणं आलावादी नियमा भवंति, ता किमम्हेहिं तित्थयर-वाणिं उल्लंघित्ताणं गंतव्वं ? एवं तमनुभाणिऊणं तं सुमतिं हत्थे गहाय निव्वडिओ नाइलो साहु-सत्थाओ । [६६३] निविट्ठो य चक्खुविसोहिए फासुग-भूपए से तओ भणियं सुमइणा जहा[६६४] गुरुणो माया- वित्तस्स जेट्ठ-भाया तहेव भइणीणं । जत्थुत्तरं न दिज्जइ हा देव ! भणामि किं तत्थ [६६५] आएसमवीमाणं पमाणपुव्वं तह त्ति नायव्वं । मंगलममंगलं वा वत्थ वियारो न कायव्वो ।। [६६६] नवरं एत्थ य मे दायव्वं अज्ज-मुत्तरमिमस्स । खर-फरुस-कक्कसाऽनिट्ठ दुट्ठ-निडुर सरेहिं तु ।। [६६७] अहवा कह उत्थल्लउ जीहा मे जेट्ठ-भाउणो पुरतो अज्झयणं-४, उद्देसो [६७३] त्ति चिंतिऊणं भणिउमाढत्तो : ? ।। जस्सुच्छंगे विनियंसणोऽहं, रमिओऽसुइ विलित्तो ।। [ ६६८ ] अहवा कीस न लज्जइ एस सयं चेव एव पभणंतो । जदं नु कुसीले एते दिट्ठीए वी न दट्ठव्वे ।। [६६९] साहुणो? त्ति जाव न एवइयं वायरे ताव णं इंगियागार - कुसलेणं मुणियं नाइलेणंजहा णं अलिय-कसाइओ एस मनगं सुमती, ता किमहं पडिभणामि ? त्ति चिंतिउं समाढत्तो । [६७०] कज्जेण विना अकंडे एस पकुविओ हु तव संचिट्ठे । संपइ अणुणिज्जंतो न याणिणो किं च मन्ने || बहु [६७१] ता किं अणुणेमिमिणं उयाहु बोलउ खणद्धतालं वा । जेणुवसमिय-कसाओ पडिवज्जइ तं तहा सव्वं ।। [६७२] अहवा पत्थावमिणं एयस्स वि संसयं अवहरेमि एस न याणइ भद्दं जाव विसेसं नऽपरिकहियं ।। [६७४] नो देमि तुब्भ दोसं न यावि कालस्स दे दोसमहं । जं हिय-बुद्धीए सहोयरा वि भणिया पकुप्पंति ।। [६७५] जीवाणं चिय एत्थं दोसं कम्मट्ठ-जाल - कसियाणं । जे चउगइ-निप्फिडणं हिओवएसं न बुज्झति ॥ [६७६] घन-राग-दोस-कुग्गाह मोह - मिच्छत्त - खवलिय-मणाणं । भाइ विसं कालउड हिओवएसामय पइण्णं ति ।। ? | ? I [६७७] एवमायण्णिऊण तओ भणियं सुमइणा । जहा तुमं चेव सत्थवादी भई नवरं न जुत्तमेयं जं साहूणं अवण्णवायं भासिज्जइ । अन्ने तु किं न पेच्छसि तुमं एएसि महानुभागाणं चेट्ठियं? छट्ठ-ट्ठम-दसम दुवालस-मास-खमणाईहिं आहारग्गहणं गिम्हायावणट्ठाए वीरासन - उक्कुड्डयासणनाणाभिग्गह-धारणेणं च कट्ठ-तवोणुचरणेणं च पसुक्खं मंस-सोणियं ति ? महाउवासगो सि तुमं, महाभासा-समिती विझ्या तए जेणेरिस-गुणोवउत्ताणं पि महानुभागाणं साहूणं कुसीले त्ति नामं संकप्पियंति । [दीपरत्नसागर संशोधितः ] [59] [३९-महानिसीहं]

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