Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 54
________________ [६०४] से भयवं ! जेण उण अन्नेसिमहीयमाणाणं सुयायवरणक्खओवसमेणं कण्णहाडित्तणेणं पंचमंगल-महीयं भवेज्जा, से विउ किं तवोवहाणं करेज्जा? गोयमा! करेज्जा । से भयवं! केण अटेणं? गोयमा! सुलभ-बोहि-लाभ-निमित्तेणं, एवं चेयाइं अकुव्वमाणे नाणकुसीले नेए | [६०५] तहा गोयमा! णं पव्वज्जा दिवसप्पभिईए जहुत्त-विहिणो वहाणेणं जे केई साहू वा साणी वा अपव्व-नाण-गहणं न कुज्जा तस्सास; चिराहीयं सुत्तत्थोभयं सरमाणे एगग्ग-चित्ते पढमचरम-पोरिसीसु दिया राओ य नाणु गुणेज्जा, से णं गोयमा ! नाण-कुसीले नेए | से भयवं ! जस्स अइगरुय नाणावरणोदएणं अहन्निसं पहोसेमाणस्स संवच्छरेणा वि वे नो थिर-परिचियं भवेज्जा? से किं कुज्जा? गोयमा! तेणा वि जावज्जीवाभिग्गहेण सज्झायसीलाणं वेयावच्चं, तहा अनुदिनं अड्ढाइज्जे सहस्से पंच मंगलाणं सुत्तत्थोभए सरमाणेगग्गअज्झयणं-३, उद्देसो - - मानसे पहोसेज्जा । से भयवं केणं अटेणं गोयमा ! जे भिक्खु जावज्जीवाभिग्गहेणं चाउक्कालियं वायणाइ जहा सत्तीए सज्झायं न करेज्जा, से णं नाण-कुसीले नेए । [६०६] अन्नं च-जे केई जावज्जीवाभिग्गहेणं अपुव्वं नाणाहिगमं करेज्जा तस्सासतीए पुव्वाहियं गुणेज्जा तस्सावियासतीए पंचमगलाणं अड्ढाइज्जे सहस्से परावत्ते से भिक्खू आराहगे तं च नाणावरणं खवेत्तु णं तित्थयरे इ वा गणहरे इ वा भवेत्ता णं सिज्झेज्जा । [६०७] से भयवं! केण अद्वेण एवं वुच्चइ जहा णं चाउक्कालियं सज्झायं कायव्वं ? गोयमा ! [६०८] मण-वइ-कायाउत्तो नाणावरणं च खवइ अनसमयं सज्झाए वतॄतो खणे खणे जाइ वेरग्गं ।।। [६०९] उड्ढमहे तिरियम्मि य जोइस-वेमाणिया य सिद्धी य सव्वो लोगालोगो सज्झाय-विउस्स पच्चक्खो ।। [६१०] दुवालस-विहम्मि वि तवे सब्भिंतर-बाहिरे कुसल-दिढे न वि अत्थि न वि य होही सज्झाय-समं तवो-कम्मं ।। [६११] एग-दु-ति-मास-खमणं सवंच्छरमवि य अनसिओ होज्जा । सज्झाय-झाण-रहिओ एगोवासप्फलं पि न लभेज्जा ।। [६१२] उग्गम-उप्पायण-एसणाहिं सुद्धं तु निच्च भुंजंतो जइ तिविहेणाऽउत्तो अनसमय-भवेज्ज सज्झाए || [६१३] तो तं गोयम ! एगग्ग माणसत्तं न उवमिङ सक्का संवच्छरखवणेणं वि जेण तहिं निज्जारानंता ।। [६१४] पंच-समिओ ति-गुत्तो खंतो दंतो य निज्जरापेही एगग्ग-मानसो जो करेज्ज सज्झायं सो मुनी भण्णे ।। [६१५] जो वागरे पसत्थं सुयनामं जो सुणेइ सुह-भावो ठड्यासवदारत्तं तक्कालं गोयमा ! दोण्हं ।। [६१६] एगमवि जो दुहत्तं सत्तं पडिबोहिउँ ठवियमग्गे ससुरासुरम्मि वि जगे तेण इहं घोसिओ अणाघाओ ।। दीपरत्नसागर संशोधितः] [53] [३९-महानिसीह - - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153