Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 53
________________ सामाइए अहीज्जिणेइ न उ णं सारंभ-परिग्गहे अकय-सामाइए, तहा पंचमंगलस्स आलावगे आलावगे आयंबिलं तहा सक्कत्थवाइसु वि दुवालसंगस्स पुण सुय-नाणस्स उद्देसगऽज्झयणेसु । [६००] से भयवं सुदुक्करं पंच-मंगल-महासुयक्खंधस्स विनओहवाणं पन्नत्तं महती य एसा नियंतणा कहं बालेहिं कज्जइ ? गोयमा! जे णं केइ न इच्छेज्जा एयं नियंतणं अविनओवहाणेणं चेव पंचमंगलाई स्य-नाणमहिज्जिणे अज्झावेइ वा अज्झावयमाणस्स वा अण्ण्णं वा पयाइ से णं न भवेज्जा पिय-धम्मे न हवेज्जा दढ-धम्मे न भवेज्जा भत्ती-जुए हीलेज्जा सुत्तं हीलेज्जा अत्थं हीलेज्जा सुत्त-त्थउभए हीलेज्जा गुरुं, जे णं हीलेज्जा सुत्तत्थो ऽभए जाव णं गुरुं से णं आसाएज्जा अतीताऽनागय-वट्टमाणे तित्थयरे आसाएज्जा आयरिय-उवज्झाय-साहणो । जे णं आसाएज्जा सुयनाण-मरिहंत-सिद्ध-साहू से तस्स णं सुदीहयालमनंत-संसारसागरअज्झयणं-३, उद्देसो माहिंडेमाणस्स तासु तासु संकुड वियडासु चुल-सीइ-लक्ख-परिसंखाणासु सीओसिणमिस्सजोणीसु तिमिसंझधयार दुग्गंधाऽमेज्झचिलीण-खारमुत्तोज्झ-सिंभ पडहच्छवस-जलुल-पूय-दुद्दिण-चिलिच्चिल-रुहिरचिक्खल्ल-दुईसण-जंबाल-पंक-वीभच्छघोर-गब्भवासेसु कढ-कढ-कटेंत-चल-चल-चलस्स टल-टल-टलस्स रज्झंतसंपिंडियंगमंगस्स सुइरं नियंतणा, जे उण एयं विहिं फासेज्जा नो णं मणयं पि अइयरेज्जा जहत्तविहाणेणं चेव पंच-मंगल-पभिइ-सुय-नाणस्स विनओवहाणं करेज्जा । __ से णं गोयमा! नो हीलेज्जा सत्तं नो हीलेज्जा अत्थं नो हीलेज्जा सुत्तत्थोभए, से णं नो आसाएज्जा तिकाल-भावी-तित्थकरे नो आसाएज्जा तिलोग सिहरवासी विय-रय-मले सिद्धे नो आसाएज्जा आयरिय-उवज्झाय साहुणो, सुदुयरं चेव-भवेज्जा पिय-धम्मे दढ-धम्मे भत्ती-जुत्ते एगंतेणं भवेज्जा सुत्तत्थानुरंजियमाणस-सद्धा-संवेगमावन्ने, से एस णं न लभेज्जा पुणो पुणो भव-चारगे गब्भ-वासाइयं अनेगहा जंतणं ति । ___ [६०१] नवरं गोयमा! जे णं बाले जाव अविण्णाय-पुन्न-पावाणं विसेसे ताव णं से पंचमंगलस्स णं गोयमा ! एगंतेणं अओग्गे, न तस्स पंचमंगल-महा-सुयक्खधं दायव्वं न तस्स पंचमंगलमहासुयक्खंधस्स एगमवि आलावगं दायव्वं, जओ अनाइ-भवंतर-समज्जिया ऽसुह-कम्म-रासि-दहणट्ठमिणं लभित्ता णं न बाले सम्मामाराहेज्जा लहुत्तं च आणेइ ता तस्स केवलं धम्म-कहाए गोयमा ! भत्ती समुप्पाइज्जइ, तओ नाऊणं पिय-धम्मं दढ-धम्म भत्ति-जुत्तं ताहे जावइयं पच्चक्खाणं निव्वाहेउं समत्थो भवति तावइयं कारविज्जइ, राइ-भोयणं च दुविह-तिविह-चउव्विहेण वा जहा-सत्तीए पच्चक्खाविज्जइ । [६०२] ता गोयमा! णं पणयालाए नमोक्कार-साहियाणं चउत्थं चउवीसाए पोरुसीहिं बारसहिं पुरिमड्ढेहिं दसहिं अवड्ढेहिं तिहिं निव्वीइएहिं चउहिं एगट्ठाणगेहिं दोहिं आयंबिलेहिं एगेणं सुद्धत्थायंबि-लेणं, अव्वावारत्ताए रोद्दट्टज्झाण-विगहा-विरहियस्स सज्झाएगग्ग-चित्तस्स गोयमा! एगमेव-आयंबिलं मास-खवणं विसेसेज्जा, तओ य जावइयं तवोवहाणगं वीसमंतो करेज्जा, तावइयं अनुगणेऊणं जाहे जाणेज्जा जहा णं एत्तियमेत्तेणं तवोवहाणेणं पंचमंगलस्स जोगीभूओ ताहे आउत्तो पढेज्जा न अन्नह त्ति । __ [६०३] से भयवं पभूयं कालाइक्कम एयं, जइ कदाइ अवंतराले पंचत्तमुवगच्छेज्जा तओ नमोक्कार विरहिए कहमत्तिमहूँ साहेज्जा ? जं सयं चेव सुत्तोवयारनिमित्तेणं असढ-भावत्ताए जहा-सत्तीए किंचि तवमारभेज्जा, तं समयमेव तमहीय-सुत्तत्थोभयं दद्वव्वं जओ णं सो तं पंच-नमोक्कारं सुत्तत्थोभयं न अविहीए गेण्हे किंतु तहा गेण्हे जहा भवंतरेसुं पि न विप्पनस्से एयज्झवसायत्ताए आराहगो भवेज्जा । [दीपरत्नसागर संशोधितः] [52] [३९-महानिसीह]Page Navigation
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