Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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अज्झयणं-३, उद्देसो
[५८६] एत्थं पुण जं पगयं तं मोत्तु जइ भणेह तावेयं हवइ असंबद्धगुरुयं गंथस्स य वित्थरमनंतं ।। [५८७] एयं पि अपत्थावे सुमहंतं कारणं समुवइस्स जं वागरियं तं जाण भव्व-सत्ताण अनुग्गहट्ठाए || [५८८] अहवा जत्तो जत्तो भक्खिज्जइ मोयगो सुसंकरिओ तत्तो तत्तो वि जने अइगरुयं माणसं पीई ||
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[५८९] एवमिह अपत्थावे विभत्ति-भर- निब्भराण परिओसं जणय गरुयं जिन-गुण गहणेएक्क रसक्खित्त-चित्ताणं ।।
[५९० ] एयं तु जं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स वक्खाणं तं महया पबंधेणं अनंत-गमपज्जवेहिं सुत्तस्स य पिहब्भूयाहिं निज्जुत्ती -भास - चुण्णीहिं जहेव अनंत-नाण- दंसण-धरेहिं तित्थ-यरेहिं वक्खाणियं तहेव समासओ वक्खाणिज्जं तं आसि, अहण्णया काल- परिहाणि-दोसेणं ताओ निज्जुत्ती-भास चुण्णीओ वोच्छिन्नाओ इओ य वच्चंतेणं काल समएणं महिड्ढी-पत्ते पयाणुसारी वइरसामी नाम दुवालसंगसुयहरे समुप्पन्ने, तेणे यं पंच-मंगल-महा-सुयक्खंधस्स उद्धारो मूल-सुत्तस्स मज्झे लिहिओ, मूलसुत्तं पुण सुत्तत्ताए गणहरेहिं अत्थत्ताए अरहंतेहिं भगवंतेहिं धम्म- तित्थंकरेहिं तिलोग महिएहिं वीरजिणिदेहिं पन्नवियं ति, एस वुड्ढसंपयाओ ।
[५९१] एत्थ य जत्थ पयं परणा ऽणुलग्गं सुत्तालावगं न संपज्जइ तत्थ तत्थ सुयहरेहिं कुलिहिय-दोसो न दायव्वो त्ति, किंतु जो सो एयस्स अचिंत चिंतामणी- कप्पभूयस्स महानिसीहसुयक्खंधस्स पुव्वायरिसो आसि, तहिं चेव खंडाखंडीए उद्देहियाइएहिं हेऊहिं बहवे पन्नगा परिसडिया, तहा वि अच्चंत-सुमहत्थाइसयं ति इमं महानिसीह - सुयक्खंधं कसिण- पवयणस्स परम-सार-भूयं परं तत्तं महत्थं ति कलिऊणं, पवयण-वच्छल्लत्तणेणं बहु-भव्व-सत्तोवयारियं च काउं तहा य आय - हियट्ठयाए आयरियहरिभद्देणं जं तत्थाऽऽयरिसे दिट्ठ तं सव्वं स-मतीए साहिऊणं लिहियं ति, अन्नेहिं पि सिद्धसेन दिवाकरवुड्ढवाइ-जक्खसेन-देवगुत्त- जसवद्धण-खमासमण-सीस- रविगुत्त- नेमिचंद - जिनदासगणि-खमग सच्चरिसिपमुहेहिं जुगप्पहाण-सुयहरेहिं बहुमन्नियमिणं ति ।
[ ५९२] से भयवं ! एवं जहुत्तविनओहवहाणेणं पंचमंगल-महासुयक्खंधमहिज्जित्ताणं पुव्वानुपुव्वीए पच्छानुपुव्वीए अनानुपुव्वीए सर- वंजण-मत्ता- बिंदु-पयक्खर - विसुद्धं थिर परिचियं काऊ महया पबंधेणं सुत्तत्थं च विन्नाय तओ य णं किमहिज्जेज्जा ? गोयमा ! इरियावहियं,
से भयवं! केणं अट्ठेणं एवं वच्चइ जहा णं पंचमंगल-महासुयक्खंधमहिज्जित्ता णं पुणो इरियावहियं अहीए ? जे एस आया से णं जया गमना ऽगमनाइ परिणए अनेग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अनोवउत्त-पमत्ते-संघट्टण अवद्यावण-किलामणं - काउणं अनालोइय- अपडिक्कंते चेव असेसकम्मक्खयट्ठयाए किंचि चिइ-वंदन सज्झाय -ज्झाणाइएसु अभिरमेज्जा तया से एग-चित्ता समाही भवेज्जा न वा । ओणं गमनागमनाइ - अनेग- अन्न-वावार परिणामासत्त-चित्तत्ताए केई पाणी तमेव भावंतरमच्छड्डिय-अट्ट-दुहट्टज्झवसिए कं चि कालं खणं विरत्तेज्जा ताहे तं तस्स फलेणं विसंवएज्जा, जया उ न कहिं चि अन्नाण- मोह - पमाय- दोसेण सहसा एगिंदियादीणं संघट्टणं परियावणं वा कयं भवेज्जा, तया य पच्छा हा हा हा ! दुट्ठ कयमम्महेहिं ! ति घनराग-दोस- मोह-मिच्छत्त-अन्नाणंधेहिं अदिट्ठ[दीपरत्नसागर संशोधितः ]
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[३९-महानिसह]
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