Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 44
________________ भूमी-निट्ठविय-सिरो कयंजली-वावडो चरित्तड्ढो [४९९] एक्कं पि गुणं हियए धरेज्ज संकाइ-सुद्ध-सम्मत्तो अक्खंडिय-वय-नियमो तित्थयरत्ताए सो सिज्झे [५००] जेसिं च णं सुगहिय-नामग्गहणाणं तित्थयराणं गोयमा महच्छेरयभूए भुयणस्स वि पयडपायडे महंताइसए पवियंभे तं जहा-- [५०१] खीणट्ठ-कम्म-पाया मुक्का बहु-दुक्ख-गब्भवसहीणं अज्झयणं-३, उद्देसो ! एस जग-पायडे ।। - - पुनरवि अ पत्तकेवल-मनपज्जव-नाण-चरितमणू [५०२] मह जोइणो वि बहु दुक्ख मयर-भव-सागरस्स उव्विग्गा । दह्णरहाइसए भवत्तमणा खणं जंति [५०३] अहवा चिट्ठउ ताव सेसवागरणं गोयमा! एयं चेव धम्मतित्थंकरे त्ति नाम-सन्निहियं पवरक्खरुव्वहणं तेसिमेव सुगहियनाम-धेज्जाणं भुवनेक्क बंधूणं अरहंताणं भगवंताणं जिनवरिं- दाणं धम्मतित्थंकराणं छज्जे, न अन्नेसिं जओ य नेगजम्मंतरऽब्भत्थ-महोवसम-संवेग-निव्वेयानुकंपा अत्थित्ताभिवत्तीसलणक्खण-पवर-सम्म-इंसणुल्लसंत-विरियानिगूहिय-उग्ग-कट्ठ-घोरदुक्कर-तव निरंतरज्जिय उत्तुंग -पुन्न-खंध-समुदय-महपब्भार-संविढत्त-उत्तम-पवर-पवित्त-विस्स-कसिण-बंधु-नाह सामिसाल अनंत-वत्त-भव-भाव छिन्न-भिन्न-पावबंधणेक्क-अबिइज्ज-तित्थयर-नामकम्म-गोयणिसिय-सुकंत-दित्तचारु-रुव दस-दिसि-पयास निरुवमट्ठ-लक्खण-सहस्समंडियजगुत्तमुत्तम-सिरि निवास-वासवाइ-देव-मनुयदिट्ठ-मेत्तत-क्खणंतं करण-लाइय चमक्क-नयन-मानसाउल-महंत-विम्हय-पमोय-कारय असेस-कसिणपावकम्म मल-कलंक-विप्प-मुक्कसमचउरंस-पवर-वर-पढम-वज्जरिसभ-नाराय-संघयणाहिट्ठिय परमपवित्तुत्तम मुत्ति धरे ते चेव भगवंते महायसे महासत्ते महानुभागे परमेट्ठी-सद्धम्म-तित्थकरे भवंति । [५०४] सयल-नरामर तियसिंद सुंदरी रूव कंति लावण्णं सव्वं पि होज्ज जइ एगरासिं-सपिंडियं कह वि [५०५] ता तं जिन-चलणंगुढग्ग-कोडि-देसेग-लक्ख-भागस्स । सन्निज्झे वि न सोहइ जह छार-उडं कंचनगिरिस्स त्ति ॥ [५०६] अहवा नाऊण गुणंतराइं अन्नेसिऊण सव्वत्थ तित्थयर गुणाणमनंत भागमलब्भंतमन्नत्थ [५०७] जं तियणं पि सयलं एगीहोऊणमुब्बमेगदिसं भागे गुणाहिओ ऽम्हं तित्थयरे परमपुज्जे त्ति [५०८] ते च्चिय अच्चे वंदे पूए आराहे गइ-मइ-सरण्णे य जम्हा तम्हा ते चेव भावओ नमह धम्मतित्थयरे [५०९] लोगे वि गाम-पुर-नगर विसय-जणवय समग्ग-भरहस्स जो जेत्तियस्स सामी तस्साणत्तिं ते करिंति [५१०] नवरं गामाहिवई सुद् सुतुद्रुक्क गाम-मज्झाओ किं देज्ज जस्स नियगं छेलाए तेत्तियं पुंछं [५११] चक्कहरो लीलाए सुदु सुथेवं पि देइ जमगण्णं दीपरत्नसागर संशोधितः] [43] [३९-महानिसीह - - -

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