Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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गह-नक्खत्त-चंदपंतीणं सूरिए इव पयड पयाव दस - दिसि पयास विप्फुरंत - किरण- पब्भारेण नियतेयसा विच्छायगे सयल सविज्जाहर-नरामराणं सदेव-दानविंदाणं सुरलोगाणं, सोहग्ग-कंति - दित्ति - लावण्ण-रूवसमुदय-सिरिए, साहाविय-कम्मक्खय-जनिय-दिव्वकय-पवर-निरुवमाणण्ण सरिस-विसेस साइसयाइसयसयल कला-कलाव विच्छ्डुपरिदंसणेणं, भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणियाहमिंद सइंदच्छरा - सकिन्नरनर-विज्जाहरस्स ससुरासुरस्सा वि णं जगस्स, अहो अहो अहो! अज्ज अदिट्ठपुव्वं दिट्ठमम्हेहिं । इणमो सविसेसाउल-महंताचिंत- परमच्छेरय-संदोहं सम-गाल मेवेगट्ठसमुइयं दिट्ठे ति अज्झयणं-३, उद्देसो
तक्खणुप्पन्न-घन-निरंतर - बहलमप्पमेयाचिंत अंतोसहरिस - पीयाणुरायवस - पवियंभंताणु समय अहिणवाहिणव-परिणाम-विसेसत्तेणं मह मह महं ! ति जंपिर परोप्पराणं विसायमुवगयं ह ह ह ! धी धिरत्थु ! अधन्ना अपुन्ना वयं इइ णिंदिर - अत्ताणगम, नंतर संखुहिय - हियय-मुच्छिर - सुलद्ध चेयण सुण्ण-वुण्णसिढिलिय-सगत्त-आउंचण-पसारणा उम्मेस - निमेसाइ- सारिरिय-वावार- मुक्क- केवलं अनोवलक्ख-खलंत-मंदमंद-दीह-हूहुंकार विमिस्स मुक्क दीहुण्ह-बहल - नीसासेगत्तेणं अइअभिनिविट्ठ बुद्धीसुनिच्छिय-मनस्स णं जगस्स, किं पुण तं तवमनुचेद्वेमो जेणेरिसं पवररिद्धिं लभेज्ज ? त्ति तग्गय-मनस्स णं, दंसणा चेव निय निय-वच्छत्थल-निहिप्पंत-करयलुप्पाइय-महंत-मानस-चमक्कारे ।
ता गोयमा! णं एवमाइ-अनंत-गुणगणाहिट्ठिय-सरीराणं तेसिं सुगहिय-नामधेज्जाणं अरहंताणं भगवंताणं धम्मतित्थगराणं संतिए गुण- गणोहरयण-संदोहोह - संघाए अहण्णिसानुसमयं जीहा-सहस्सेणं पि वागरंतो सुरवई वि अन्नयरे वा केई चउनाणी महाइसईय-छउमत्थेणं सयंभुरमणोवहिस्स व वास-कोडीहिं पि नो पारं गच्छेज्जा, जओ णं अपरिमिय-गुण-रयणे गोयमा ! अरहंते भगवंते धम्मतित्थगरे भवंति किमित्थं भण्णउ? जत्थ य णं तिलोग-नाहाणं जग - गुरुणं - भुवनेक्क- बंधूणं तेलोक्क लग्गणखंभ-पवर-वरधम्मतित्थगंराणं केइ सुरिंदाइ - पायंगुट्ठग्ग- एग - देसाओ अनेगगुण - गणालं करियाओ भत्ति-भरणिब्भरिक्करसिया ।
सव्वेसिं पि वा सुरीसाणं अनेग- भवंतर - संचिय अनिट्ठ - दुट्ठ- ट्ठकम्म- रासी- जनिय-जोगच्चदोमनसादि-दुक्ख-दारिद्द-किलेस - जम्म-जरा-मरण-रोग-सोग संता- वुव्वेग-वाहिवेयणाईण खयट्ठाए एगगुणस्सानंत-भागमेगं भणमाणाणं जमग-समगमेव दिनयरकरे इ वानेग-गुण- गणोहे जीहग्गे वि फुरंति, ताई च न सक्कासिंदा वि देवगणा समकालं भाणिऊणं किं पुण अकेवली मंस-चक्खुणो ? ता गोयमा ! णं एस एत्थ परमत्थे वियाणेयव्वं ।
जहा-णं जइ तित्थगराणं संतिए गुण- गणोहे तित्थयरे चेव वायरंति न उण अन्ने ओ सातिसया तेसिं भारती, अहवा गोयमा ! किमेत्थ पभूय-वागरणेणं ? सारत्थं भण्णए । [४९५] नामं पि सयल-कम्मट्ठ-मल-कलंकेहिं विप्
तियसिंद च्चिय-चलणाण जिन वरिंदाण जो सरइ [४९६] तिविह-करणोवउत्तो खणे खणे सील-संजमुज्जुत्तो अविराहिय वय-नियमो सो वि हु अइरेण सिज्झेज्जा [४९७] जो उण दुह-उव्विग्गो सुह-तण्हालू अलि व कमल-व थय-थुइ-मंगल-जय-सद्द वावडो रुणु रुणे किंचि
[४९८] भत्ति-भर-निब्भरो जिन वरिंद पायारविंद-जुग-पुरओ
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[दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीहं]
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