Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 42
________________ एवमेते अनेगहा पन्नविज्जंति परुविज्जंति आघविज्जंति पट्ठविज्जंति दंसिज्जंति उवदंसिज्जति । तहा-सिद्धाणि परमानंद-महूसव महकल्लाण-निरूवम- सोक्खाणि निप्पकंप-सुक्कज्झाणाइ अचिंत-सत्ति-सामत्थओ सजीववीरिएयं जोग - निरोहाइणा मह - पयत्तेणित्ति सिद्धा । अट्ठ-प्पयारकम्मक्खएण वा सिद्धं सज्झमेतेसिं ति सिद्धा, सिय- माज्झायमेसिमिति वा सिद्धि, सिद्धे निट्ठिए प सयल-पओयण-वाय-कयंबमेतेसिमिति वा सिद्धा । एवमेते इत्थी - पुरिस नपुंस सलिंग - अन्नलिंग - गिहिलिंगपत्तेयबुद्ध बुद्धबोहिय जाव णं कम्म क्खय-सिद्धा य भेदेहि णं अनेगहा पन्नविज्जंति । अज्झयणं-३, उद्देसो तहा-अट्ठारस-सीलंग-सहस्साहिट्ठिय-तनू छत्तीसइविहमायारं जह-ट्ठियम-गिलाए-महणिस अनुसमयं आयरंति पवत्तयंति त्ति आयरिया, परमप्पणय हियमायरंति त्ति आयरिया, भव्व सत्त-सीसगणाणं वा हियमायरंति आयरिया, पाण-परिच्चाए वि उ पुढवादीणं समारंभं नायरंति नायरंभंति नाजाति वा आयरिया, सुमहावरद्धे वि न कस्सई मनसा वि पावमायरंति त्ति वा आयरिया, एवमेते नाम-ठवणादीहिं अनेगहा पन्नविज्जंति । तहा-सुसंवुडासव-दारे-मनो- वड् - काय - जोगत्त-उवउत्ते विहिणा सर - वंजण- मत्ता-बिंदु-पयक्खरविसुद्ध-दुवालसंग-सुय-नाणज्झयण- ज्झावणेणं परमप्पणो य मोक्खोवायं ज्झायंति त्ति उवज्झाए । थिर-परिचियमनंत-गम-पज्जवत्थेहिं वा दुवालसंगं सुयनाणं चिंतंति अनुसरति एगग्गमानसा झायंति त्ति वा उवज्झाए एवमेते हि अनेगहा पन्नविज्जति । तहा-अच्चंत-कट्ठ उग्गुग्गयर घोरतव चरणाइ- अनेगवय - नियमो - ववास-नानाभिग्गह-विसेससंजम-परिवालण सम्मं-परिसहोवसग्गाहियासणेणं सव्व - दुक्ख - विमोक्खं मोक्खं साहयंति त्ति साहवो । अयमेव इमाए चूलाए भाविज्जइ एतेसिं नमोकारो । एसो पंच नमोक्कारो किं करेज्जा ? सव्वं पावं नाणावरणीयादि-कम्म-विसेसं तं पयरिसेणं दिसोदिसं नासयइ सव्व - पाव-प्पणासणो एस चूलाए पढमो उद्देसओ । एसो पंच नमोक्कारो सव्व-पाव-प्पणासणो किं विहेउ ? मंगो निव्वाण - सुह-साहणेक्क-खमो सम्म-द्दंसणाइ आराहओ अहिंसा - लक्खणो धम्मो तं मे लाएज्जा त्ति मंगल । ममं भवाओ संसारओ गलेज्जा तारेज्जा वा मंगलं । बद्ध-पुट्ठनिकाइय-ट्ठप्पगार - कम्म- रासि मे गालेज्जा विलेज्जे त्ति वा मंगलं । एएसिं मंगलाणं अन्नेसिं च मंगलाणं सव्वेसि किं पढमं आदीए अरहंताईणं थुई चेव हवइ मगलं ति । एस समासत्थो वित्थरत्थं तु इमं तं जहा-ते णं काले णं त णं समए णं गोयमा ! जे केइ पुव्विं वावण्णिय-सद्दत्थे अरहंते भगवंते धम्म- तित्थकरे भवेज्जा, से णं परमपुज्जाणं पि पुज्जयरे भवेज्जा ओणं ते सव्वे वि एयलक्खण-समण्णिए भवेज्जा तं जहा- अचिंत अप्पमेय-निरुवमाणण्ण सरिस-पवरवरुत्तम-गुणोहाहिट्ठियत्तेणं तिण्हं पि लोगाणं संजणिय-गरुय महंत - मानसानंदे | तहा य जम्मंतर-संचिय-गरुय-पुन्न- पब्भार-संविदत्त- तित्थयर-नाम-कम्मोदएणं दीहरगिम्हायव-संताव-किलंत - सिहि उलाणं वा पढम- पाउस - धारा-भर- वरिसंत- घन-संघायमिव परम- हिओवएसपयाणाइणा घन-राग-दोस-मोह-मिच्छत्ताविरति-पमाय-दुट्ठ-किलिट्ठज्झवसायाइ- समज्जियासुह-घोर-पावकम्मायव-संतावस्स निण्णासगे भव्व-सत्ताणं, अनेग जम्मंतर - संविढत्त-गुरुय-पुन्न-पब्भाराइसय-बलेणं समज्जियाउल बल-वीरिए सरियं सत्तं - परक्कमाहिट्ठियतणू, सुकंत- दित्त - चारु- पायंगुट्ठग्ग-रूवाइसएणं सयल[दीपरत्नसागर संशोधितः ] [३९-महानिसीहं] [41]

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