Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 34
________________ सचित्ताचित्तं-वत्थुविसयं वा विविहज्झवसाएण कारिमाकारिमोवगरणेणं मनसा वा वायसा वा कारण वा से णं समणे वा समणी वा दूरंत-पत-लक्खण-अदट्ठव्वे अमग्ग- समायारे महापाव-कम्मे नो णं वंदेज्जा नो णं वंदावेज्जा नो णं वंदिज्जमाण वा समणुजाणेज्जा तिविहं जाव णं विसोहिकालं ति, से भयवं जे वंदेज्जा से किं लभेज्जा ?, गोयमा ! जे तं वंदेज्जा से अट्ठारसण्हं सीलंगसहस्सधारीणं महानुभागाणं तित्थयरादीणं महतीं आसायणं कुज्जा, जे णं तित्थयरादीणं आसायणं कुज्जा, अज्झयणं-२, उद्देसो-३ सेणं अज्झवसायं पşच्चा जाव णं अनंत संसारियत्तणं लभेज्जा । [४१३] विप्पहिच्चित्थियं सम्मं, सव्वहा मेहुणं पिय अत्थेगे गोयमा ! पाणी जे नो चइय परिग्गहं || [४१४] जावइयं गोयमा ! तस्स सचित्ताचित्तोभयत्तगं पभूयं चानुजीवस्स भवेज्जा उ परिग्गहं ।। [४१५] तावइएणं तु सो पाणी ससंगो मोक्ख - साहणं नाणादि- तिगं न आराहे तम्हा वज्जे परिग्गहं || [४१६] अत्थेगे गोयमा ! पाणी जे पयहित्ता परिग्गहं आरंभं नो विवज्जेज्जा जं चीयं भवपरंपरा || [४१७] आरंभे पत्थियस्सेग - वियल - जीवस्स वइयरे संघट्टणाइयं कम्मं जं बद्धं गोयमा ! सुण ।। [४१८] एगे बेइंदिए जीवे एगं समयं अनिच्छमाणे बलाभिओगेणं हत्थेण वा पाएण वा अन्नयरेण वा सलागाइ उवगरण-जाएणं जे केइ पाणी अगाढं संघट्टेज्जा वा संघट्टावेज्ज वा संघटिज्जमाणं वा अगाढं परेहिं समणुजाणेज्जा, से णं गोयमा ! जया तं कम्मं उदयं गच्छेज्जा तया णं महया केसेणं छम्मासेणं वेदेज्जा गाढं दुवालसहिं संवच्छरेहिं, तमेव अगाढं परियावेज्जा वास- सहस्सेणं गाढं दसहिं वाससहस्सेहिं, तमेव अगाढं किलामेज्जा वास - लक्खेणं गाढं दसहिं वासलक्खेहिं, अहा णं उद्दवेज्जा तओ वासकोडिए एवं ति-चउ-पंचिंदिएसु दट्ठव्वं । [४१९] सुहुमस्स पुढवि-जीवस्स जत्थेगस्स विराहणं अप्पारंभं तयं बेंति गोयमा [४२०] सुहुमस्स पुढवि-जीवस्स वावत्ती जत्थ संभवे महारंभं तयं बेंति गोयमा [४२१] एवं तु सम्मिलंतेहिं कम्मुक्कुरुडेहिं गोयमा से सोब्भे अनंतेहिं जे आरंभे पवत्तए || [४२२] आरंभे वट्टमाणस्स बद्ध-पुट्ठे-निकाइयं कम्मं बद्धं भवे जम्हा तम्हारंभं विवज्जए || [४२३] पुढवाइ-अजीव-कायं ता सव्व-भावेहिं सव्वहा आरंभा जे नियट्टेज्जा, से अइरा जम्म-जरा-मरण । सव्व-दारिद्द-दुक्खाणं विमुंच्चइति ।। [ ४२४] अत्थेगे गोयमा ! पाणी जे एयं परिबुज्झिउं [33] [दीपरत्नसागर संशोधितः ] ! सव्व-केवली ।। ! सव्व केवली || I | | | | I ! | I [३९-महानिसीहं]

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