Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 30
________________ एगिंदियत्ताए पुढवादीसु गया समाणी अनंत-काल-परियट्टेण वि णं नो पावेज्जा बेइंदियत्तणं एवं कह कह वि बहुकेसेण अनंत-कालाओ एगिंदियत्तणं खविय बेइंदियत्तं एवं तेइंदियत्तं चउरिंदियत्तमवि केसेणं वेयइत्ता पंचिंदियत्तेणं आगया समाणी । अज्झयणं-२, उद्देसो-३ दुब्भित्थिय-पंड-तेरिच्छ-वेयमाणी हा हा भूय-कट्ठ-सरणा सिविणे वि अदिट्ठ- सोक्खा निच्चं संतावुव्वेविया, सुहिसयण-बंधव-विवज्जिया, आजम्मं कुच्छणिज्जं गरहणिज्जं निंदणिज्जं खिंसणिज्जं बहु-कम्मंतेहिं अनेग-चाडु-सएहिं लद्धोदरभरणा सव्व-लोग- परिभूया, चउ-गतीए संसरेज्जा, अन्नं च णं गोयमा ! जावइयं तीए पाव- इत्थीए बद्ध - पुट्ठनिकाइयं कम्म ट्ठिइं समज्जियं, तावइयं इत्थियं अभिलसिउकामे पुरिसे उक्किट्ठ- किट्ठयरं अनंतं कम्म ट्ठिइं बद्ध-पुट्ठ-निकाइयं समज्जिणेज्जा, एतेणं अट्ठेणं एवं वच्चइ, जहा णं पुरिसे वि णं जे णं नो संजुज्जे से णं धन्ने जे णं संजुज्जे से णं अधन्ने । [३९०] भयवं केसणं पुरिसे स णं पुच्छा जाव णं धन्नं वयासि ? गोयमा ! छव्विहे पुरिसे ने तं जहा-अहमाहमे, अहमे, विमज्झिमे, उत्तमे, उत्तमुत्तमे, सव्वुत्तमुत्तमे । [३९१] तत्थ णं जे सव्वुत्तमुत्तमे पुरिसे से णं पंचगुब्भडजोव्वण- सव्वुत्तम-रूव-लावण्णकंति-कलियाए वि इत्थीए नियंबारूढो वाससयं पि चिट्ठिज्जा नो णं मनसा वि तं इत्थियं अभिलसेज्जा । [३९२] जे णं तु से उत्तमुत्तमे से णं जइ कहवि तुडी - तिहाएणं मनसा समयमेक्कं अभिलसे तहा वि बीय समये मनं सन्निरुंभिय अत्ताणं निंदेज्जा गरहेज्जा न पुणो बीएणं तज्जम्मे इत्थीयं मनसा वि उ अभिलसेज्जा, जे णं से उत्तमे से णं जइ कह वि खणं मुहुत्तं वा इत्थियं कामिज्जमाणिं पेक्खेज्जा तओ मनसा अभिलसेज्जा जाव णं जामद्ध-जामं वा नो णं इत्थीए समं विकम्मं समायरेज्जा । [३९३] जइ णं बंभयारी कयपच्चक्खाणाभिग्गहे, अहा णं नो बंभयारी नो कयपच्चक्खाणाभिग्गहे तो णं निय- कलत्तभयणा न तु णं तिव्वेसु कामेसु अभिलासी भवेज्जा, तस्स एयस्स णं गोयमा! अत्थि बंधो किंतु अनंत- संसारियत्तणं नो निबंधेज्जा | [३९४] जेणं से विमज्झिमे से णं निय- कलत्तेणं सद्धिं विकम्मं समायरेज्जा नो णं परकलत्तेणं, एसे य णं जइ पच्छा उग्ग- बंभयारी नो भवेज्जा तो णं अज्झवसाय-विसेसं तं तारिसमंगीकाऊणं अनंत - संसारियत्तणे भयणा । जओ णं जे केइ अभिगय-जीवाइ- पयत्थे सव्व-सत्ते आगमानुसारेणं सुसाहूणं धम्मोवद्वंभ-दानाइ-दान- सील-तव-भावनामइए चउव्विहे धम्म-खंधे समनुट्ठेज्जा । से णं जइ कहवि नियम वयभंगं न करेज्जा, तओ णं साय-परंपरएणं सुमानुसत्त-सुदेवत्ताए जाव णं अपरिवडिय सम्मत्ते निसग्गेण वा अभिगमेण वा जाव अट्ठारससीलंग सहस्सधारी भवित्ताणं निरुद्धासवदारे, विहूय-रयमले पावयं कम्मं खवित्ताणं सिज्झेज्जा । [३९५] जे य णं से अहमे से णं स-पर-दारासत्त- मानसे अनुसमयं कूरज्झव-सायज्झवसियचित्ते हिंसारंभ-परिग्गहाइसु अभिरए भवेज्जा, तहा णं जे य से अहमाहमे से णं महा-पाव-कम्मे सव्वाओ इत्थीओ वाया मनसा य कम्मुणा तिविहं तिविहेणं अनुसमयं अभिलसेज्जा तहा अच्चंतकूरज्झवसायअज्झवसिएहिं चत्ते हिंसारंभ - परिग्गहासत्ते कालं गमेज्जा, एएसिं दोन्हं पि णं अनंत संसारियत्तणे नेयं । [दीपरत्नसागर संशोधितः ] [29] [३९-महानिसीहं]

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