Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 31
________________ [३९६] भयवं जे णं से अहमे जे वि णं से अहमाहमे पुरिसे तेसिं च दोण्हं पि अनंतसंसारियत्तणं समक्खायं तो णं एगे अहमे एगे अहमाहमे, एतेसिं दोण्हं पि परिसावत्थाणं के पइविसेसे ? गोयमा! जे णं से अहम-पुरिसे से णं जइ वि उ स-पर-दारासत्त-मानसे कूरज्झवसायज्झवसिएहिं चित्ते हिंसारंभ-परिग्गहासत्त-चित्ते तहा वि णं दिक्खियाहिं साहुणीहिं अन्नयरासुं च सील-संरक्खण-पोसहोववासअज्झयणं-२, उद्देसो-३ निरयाहिं दिक्खियाहिं गारत्थीहिं वा सद्धिं आवडिय-पेल्लियामंतिए वि समाणे नो वियम्मं समायरेज्जा । जे य णं से अहमाहमे पुरिसे से णं निय-जननि-पभिईए जाव णं दिक्खियाईहिं साहुणीहिं पि समं वियम्म समायरेज्जा, ते णं चेव से महा-पाव-कम्मे सव्वाहमाहमे समक्खाए, से णं गोयमा पइविसेसे । तहा य जे णं से अहम्म-पुरिसे से णं अनंतेणं कालेणं बोहिं पावेज्जा, जे य उ ण से अहमाहमे महा-पावकारी दिक्खियाहिं पि साहुणीहिं पि समं वियम्मं समायरिज्जा से णं अनंत-हुत्तो वि अनंत-संसारमाहिंडिऊणं पि बोहिं नो पावेज्जा, एसे य गोयमा! बितिए पइ-विसेसे । - [३९७] तत्थ णं जे से सव्वुत्तमे से णं छउमत्थ-वीयरागे नेए, जेणं तु से उत्तमुत्तमे से णं अणिढिपत्त-पभितीए जाव णं उवसामग-खवए ताव णं निओयणीए, जेणं च से उत्तमे से णं अप्पमत्तसंजए नेए, एवमेएसिं निरूवणा कुज्जा ।। [३९८] जे उण मिच्छदिट्ठी भवित्ताणं उग्गबंभयारी भवेज्जा हिंसारंभ-परिग्गहाईणं विरए, से णं मिच्छ-दिट्ठी चेव नेए नो णं सम्मदिट्ठी, तेसिं च णं अविइय जीवाइ-पयत्थ-सब्भावाणं गोयमा ! नो णं उत्तमत्ते अभिनंदणिज्जे पसंसणिज्जे वा भवड़ जओ तेणं ते अनंतर-भविए दिव्वोरालिए विसए पत्थेज्जा, अन्नं च कयादी ते दिव्वित्थियादओ संचिक्खिय तओ णं बंभव्वयाओ परिभंसेज्जा नियाणकडे वा हवेज्जा [३९९] जे य णं से विमज्झिमे, से णं तं तारिसमज्झवसायमंगीकिच्चाणं विरयाविरए दहव्वे | [४००] तदा णं जे से अहमे, जे य णं से अहमाहमे, तेसिं तु णं एगंतेणं जहा इत्थीसुं तहा णं नेए जाव णं कम्म-द्विइं समज्जेज्जा नवरं पुरिसस्स णं संचिक्खणगेसुं वच्छरुहोवरतल-पक्खएसुं लिंगे य अहिययरं रागमुप्पज्जे, एवं एते चेव छप्पुरिसविभागे । ___ [४०१] कासिं चि इत्थीणं गोयमा ! भव्वत्तं सम्मत्त-दढत्तं च अंगी-काऊणं जाव णं सव्वुत्तमे पुरिसविभागे ताव णं चिंतणिज्जे, नो णं सव्वेसिमित्थीणं । [४०२] एवं तु गोयमा ! जीए इत्थीए -ति कालं पुरिससंजोग-संपत्ती न संजाया अहा णं परिस-संजोग-संपत्तीए वि साहीणाए जाव णं तेरसमे चोइसमे पन्नरसमे णं च समएणं परिसेणं सद्धिं न संजुत्ता नो वियम्मं समायरियं, से णं जहा घन-कट्ठ-तण-दारु-समिद्धे केई गामे इ वा नगरे इ वा रण्णे इ वा संपलित्ते चंडानिल-संधुक्किए पयलित्ताणं पयलित्ताणं निडज्झिय निडज्झिय चिरेणं उवसमेज्जा । एवं इगवीसमे बावीसमे जाव णं सत्ततीसइमे समए जहा णं पदीव-सिहा वावन्ना पुनरवि सयं वा तहाविहेणं चुण्ण-जोगेणं वा पयलिज्जा वा, एवं सा इत्थी-पुरिस-दसणेण वा पुरिसालावग-सवणेण वा मदेणं कंदप्पेणं कामग्गिए पुनरवि उ पयलेज्जा । दीपरत्नसागर संशोधितः] [30] [३९-महानिसीह

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