Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
तृतीय शतक प्राथमिक
२५४ संग्रहणी गाथा
२५६ प्रथम उद्देशक-विकुर्वणा
प्रथम उद्देशक का उपोद्घात २५६, चमरेन्द्र और उसके अधीनस्थ देववर्ग की ऋद्धि आदि तथा विकुर्वणा शक्ति २५७, गौतम' संबोधन २६२, दो दृष्टान्तों द्वारा स्पष्टीकरण २६३, विक्रिया-विकुर्वणा २६३, वैक्रिय समुद्घात में रत्नादि औदारिक पुद्गलों का ग्रहण क्यों? २६३, आइण्णे' 'वितिकिण्णे' आदि शब्दों के अर्थ २६३, चमरेन्द्र आदि की विकुर्वणा शक्ति प्रयोग रहित २६४, देव निकाय में दस कोटि के देव २६४, अग्रमहिषियाँ २६४, वैरोचनेन्द्र बलि और उसके अधीनस्थ देववर्ग की ऋद्धि तथा विकुर्वणाशक्ति २६६, वैरोचनेन्द्र का परिचय २६६, नागकुमारेन्द्र धरण और उसके अधीनस्थ देववर्ग की ऋद्धि आदि तथा विकुर्वणा शक्ति २६७, नागकुमारों के इन्द्र धरणेन्द्र का परिचय २६७, शेष भवनपति, वाणव्यंतर एवं ज्योतिष्क देवों के इन्द्रों और उनके अधीनस्थ देव वर्ग की ऋद्धि, विकुर्वणाशक्ति आदि का निरूपण २६८, भवनपति देवों के बीस इन्द्र २६८, भवन संख्या २६८, सामानिक देवसंख्या २६८, आत्मरक्षक देव संख्या २६८, अग्रमहिषियों की संख्या २६८, व्यंतर देवों के सोलह इन्द्र २६८, व्यन्तर इन्द्रों का परिवार २६८, ज्योतिष्केन्द्र परिवार २६९, वैक्रिय शक्ति २६९, दो गणधरों की पृच्छा २६९, शक्रेन्द्र, तिष्यक देव तथा शक्र के सामानिक देवों की ऋद्धि, विकुर्वणा शक्ति आदि का निरूपण २६९, शक्रेन्द्र का परिचय २७२, तिष्यक अनगार की सामानिक देव रूप में उत्पत्ति-प्रक्रिया २७३, लद्धे पत्ते अभिसमन्नागते' का विशेषार्थ २७३, 'जहेव चमरस्स' का आशय २७३, कठिन शब्दों के अर्थ २७३, ईशानेन्द्र कुरुदत्तपुत्र देव तथा सनत्कुमारेन्द्र से लेकर अच्युतेन्द्र तक के इन्द्रों एवं उनके सामानिकादि देव वर्ग की ऋद्धि विकुर्वणा शक्ति आदि का प्ररूपण २७३, कुरुदत्त पुत्र अनगार के ईशान-सामानिक होने की प्रक्रिया २७६, ईशानेन्द्र और शक्रेन्द्र में समानता ओर विशेषता २७६, नागकुमार से अच्युत तक के इन्द्रादि की वैक्रियशक्ति २७७, सनत्कुमार देवलोक में देवी कहाँ से? २७७, देवलोकों के विमानों की संख्या २७७, सामानिक देवों की संख्या २७७,'पगिज्झिय' आदि कठिन शब्दों के अर्थ २७८, मोकानगरी से विहार और ईशानेन्द्र द्वारा भगवन् वन्दन २७८,राजप्रश्नीय में सूर्याभदेव के भगवत्सेवा में आगमन-वृत्तान्त का अतिदेश २७९, कूटाकारशालादृष्टान्तपूर्वक ईशानेन्द्र ऋद्धि की तत्शरीरानुप्रविष्ट-प्ररूपणा २७९, कूटाकारशाला दृष्टान्त २८०, ईशानेन्द्र का पूर्वभवः तामली का संकल्प और प्राणामाप्रव्रज्या ग्रहण २८०, तामलित्तीताम्रलिप्ती २८४, मौर्यपुत्र तामली २८४ कठिन शब्दों के विशेष अर्थ २८४, प्रव्रज्या का नाम प्राणामा रखने का कारण २८५, 'प्राणामा' का शब्दशः अर्थ २८५, कठिन शब्दों के अर्थ २८५, बालतपस्वी तामली द्वारा पादपोपगमन अनशन-ग्रहण २८७, संलेखनातप २८७, पादपोपगमन अनशन २८७, बलिचंचावासी देवगण द्वारा इन्द्र बनने की विनात : तामला तापस द्वारा अस्वीकार २८७, पुरोहित बनने की विनति नहीं २९०, देवों की गति के विशेषण २९०, 'सपक्खिं सपडिदिसिं' की व्याख्या २९०, तामली बालतपस्वी की ईशानेन्द्र के रूप में उत्पत्ति २९०, तामली तापस की कठोर बाल तपस्या एवं संलेखनापूर्वक अनशन का सुफल २९१, देवों में पाँच ही पर्याप्तियों का उल्लेख २९१, बलि चंचावासी असुरों द्वारा तामली तापस के शव की विडम्बना २९१, प्रकुपित ईशानेन्द्र द्वारा भस्मीभूत बलिचंचा देख भयभीत असुरों द्वारा अपराध-क्षमायाचना २९२, ईशानेन्द्र के प्रकोप से उत्तप्त एवं भयभीत असुरों द्वारा क्षमायाचना
[३२]