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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक संयम दो प्रकार का है, सराग-संयम और वीतराग-संयम । सराग-संयम दो प्रकार का है, सूक्ष्म-सम्परायराग - संयम, बादर-सम्परायराग-संयम । सूक्ष्म सम्पराय सराग संयम दो प्रकार का है-प्रथम समय-सूक्ष्मसम्पराय सराग संयम, अप्रथम समय सूक्ष्म सम्पराय सराग संयम । अथवा चरम-समय-सूक्ष्म-सम्पराय-सराग-संयम, अचरम समय - सूक्ष्म-सम्पराय-सराग-संयम । अथवा सूक्ष्म-सम्पराय-संयम दो प्रकार का है, संक्लिश्यमान उपशम-श्रेणी से गिरते हुए जीव का, विशुध्यमान उपशम-श्रेणी पर चढ़ते हुए जीव का।
बादर-सम्पराय-सराग-संयम दो प्रकार का है, प्रथम-समय-बादर-सम्पराय-सराग-संयम, अप्रथम-समयबादर-सम्पराय-संयम । अथवा चरम-समय-बादर-सम्पराय-सराग-संयम और अचरम बादर सम्पराय सराग संयम । अथवा बादर-सम्पराय-सराग-संयम दो प्रकार का है, प्रतिपाती और अप्रतिपाती।
वीतराग संयम दो प्रकार का कहा गया है, यथा-उपशान्त-कषाय-वीतराग-संयम, क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम उपशान्तकषाय वीतराग संयम दो प्रकार का है, प्रथम-समय-उपशान्त-कषाय-वीतराग-संयम और अप्रथम-समयउपशान्त-कषाय-वीतराग-संयम, अथवा चरमसमय उपशान्त कषाय वीतराग संयम, अचरम-समय-उपशान्त -कषायवीतराग संयम । क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम दो प्रकार का है-छद्मस्थ-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम, केवली-क्षीणकषाय-वीतराग-संयम । छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग संयम दो प्रकार का है, स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीण-कषाय-वीतरागसंयम, बुद्ध-बोधित-छद्मस्थ-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम । स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम दो प्रकार का कहा गया है, प्रथम-समय-स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम, अप्रथम-समय-स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग संयम । अथवा चरम-समय-स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीण-कषाय-वीतराग -संयम और अचरम-समयस्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम ।
बुद्ध-बोधित-छद्मस्थ-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम दो प्रकार का कहा गया है, यथा-प्रथम-समय-बुद्ध-बोधितछद्मस्थ-क्षीण-कषाय-वीतराग संयम और अप्रथम-समय-बुद्ध-बोधित-छद्मस्थ-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम। अथवा चरम-समय और अचरम-समय-बुद्ध-बोधित-केवली । क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम दो प्रकार का कहा गया है । यथा
सयोगी-केवली-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम, अयोगी-केवली-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम । सयोगी-केवलीक्षीण-कषाय-वीतराग-संयम दो प्रकार का है, प्रथम-समय और अप्रथम-समय-सयोगी-केवली-क्षीण-कषाय -वीतरागसंयम, अथवा चरम-समय और अचरम समय सयोगी-केवली-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम।
अयोगी-केवली-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम दो प्रकार का है, प्रथम-समय और अप्रथमसमय अयोगीकेवली-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम । अथवा चरम-समय-अयोगी-केवली-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम, अचरमसमय-अयोगी-केवली-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम। सूत्र-७३
पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-सूक्ष्म और बादर । इस प्रकार यावत् दो प्रकार के वनस्पतिकायिक जीव कहे गए हैं, यथा-सूक्ष्म और बादर।
पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त और अपर्याप्त । इस प्रकार यावत्-दो प्रकार के वनस्पतिकायिक जीव कहे गए हैं, यथा-पर्याप्त और अपर्याप्त । पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-परिणत और अपरिणत । इस प्रकार यावत्-दो प्रकार के वनस्पतिकायिक जीव कहे गए हैं, यथा-परिणत और अपरिणत ।
द्रव्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-परिणत और अपरिणत ।
पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-गतिसमापन्नक, अगतिसमापन्नक (स्थित) । इस प्रकार यावत्-वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-गति-समापन्नक और अगति-समापन्नक ।
द्रव्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-गति-समापन्नक और अगति-समापन्नक।
पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-अनन्तरावगाढ़ और परम्परावगाढ़ । इस प्रकार यावत्-द्रव्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-अनन्तरावगाढ़ और परम्परावगाढ़।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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