Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम उद्देशक : गाथा ७ से ८
ही इनका खण्डन । दूसरे मतवादियों द्वारा कल्पित इन पंचभूतों से भिन्न, परलोक में जाने वाला, सुख-दुःख भोगने वाला आत्मा नाम का कोई दूसरा पदार्थ नहीं है, क्योंकि उसका (आत्मा का) बोधक कोई प्रमाण नहीं है। प्रत्यक्ष ही एकमात्र प्रमाण है।
__"अनुमान, आगम आदि को हम प्रमाण नहीं मानते, क्योंकि अनुमान आदि में पदार्थ का इन्द्रियों के साथ साक्षात् सम्बन्ध (सत्रिकर्ष) नहीं होता, इसलिए उनका मिथ्या होना सम्भव है । अतः हम मानते हैं कि पृथ्वी आदि पंचमहाभूतों के शरीर रूप में परिणत होने पर इन्हीं भूतों से अभिन्न ज्ञानस्वरूप चैतन्य उत्पन्न होता है। जैसे-गुड-महआ आदि मद्य की सामग्री के संयोग से मदशक्ति उत्प हो जाती है, वैसे ही शरीर में इन पंचमहाभूतों के संयोग से चैतन्यशक्ति उत्पन्न होती है। यह चैतन्य शक्ति पंचमहाभूतों से भिन्न नहीं है, क्योंकि वह पंचमहाभूतों का ही कार्य है। जिस प्रकार जल में बुलबुले उत्पन्न होते हैं और इसी में विलीन हो जाते हैं, इसी प्रकार आत्मा भी इन्हीं पंचभूतों से उत्पन्न होकर इन्हीं में विलीन हो जाता है ।
द्वितीय श्रु तस्कन्ध में इसका विस्तृत वर्णन है । यद्यपि कई प्राचीन चार्वाक पृथ्वी, जल, तेज और वायु, इन चार महाभूतों को ही मानते हैं, परन्तु अर्वाचीन चार्वाकों ने सर्वलोक प्रसिद्ध होने से पांचवें आकाश को भी महाभूत मान लिया।
- दीघनिकाय के ब्रह्मजालसुत्त में ऐसे ही चातुर्भोतिकवाद का वर्णन है-'वे भी आत्मा को रूपी, चार महाभूतों से निर्मित तथा माता-पिता के संयोग से उत्पन्न मानते हैं। तथा यह कहते हैं कि शरीर के विनष्ट होते ही चेतना भी उच्छिन्न, विनष्ट, और लुप्त हो जाती है।४
निराकरण-नियुक्तिकार ने इस वाद का खण्डन इस प्रकार किया है- 'पृथ्वी आदि पंचभूतों के संयोग से चैतन्यादि गुण (तथा तज्जनित बोलना, चलना, सुनना आदि क्रियारूप गुण) उत्पन्न नहीं हो सकते, क्योंकि पंचमहाभूतों का गुण चैतन्य नहीं है । अन्य गुण वाले पदार्थों के संयोग से अन्य गुण वाले पदार्थ की उत्पत्ति नहीं हो सकती । जैसे -बालू में तेल उत्पन्न करने का स्निग्धता गुण नहीं है, इसलिए बालू को पीलने से तेल पैदा नहीं होता, वैसे ही पंचभूतों में चैतन्य उत्पन्न करने का गुण न होने से, उनके संयोग से चैतन्य उत्पन्न नहीं हो सकता। स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और स्रोतरूप पाँच इन्द्रियों
३३ (क) सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति पत्रांक १५-१६
(ख) देखें द्वितीयश्रु तस्कन्ध सूत्र ६५४-६५८ (ग) सूत्रकृतांग अमरसुखबोधिनी व्याख्या, पृ० ६५-६६ (घ) (१) पृथिव्यादिभूतसंहत्यां यथा देहादिसम्भवः । मदशक्तिः सुरांगेभ्यो यत् तद् वच्चिदात्मनि ।
-षड्दर्शन समुच्चय ८४ श्लोक (२) शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञके च पृथिव्यादिभूतेभ्यश्चैतन्याभिव्यक्तिः पिष्टोदक गुडधातक्यादियो मदशक्तिवत् ।'
-प्रमेयकमलमार्तण्ड पृ० ११५ (३) पृथिव्यापस्तेजोवायूरिति तत्त्वानि, तत्समुदाये शरीरविषयेन्द्रियसंज्ञाः तेभ्यश्चैतन्यम् ।
-तत्वोपप्लव शां० भाष्य ३४ ..."अयं अत्ता रूपी चातुमहाभूतिको मातापेत्तिकसम्भवो कायस्स भेदा उच्छिज्जत्ति विनस्सति, न होति परं मरणा ..."इत्थेके सतो सत्तस्स उच्छेदं विनासं विभव पञ्ञाति ।
-दीघनिकाय ब्रह्मजाल सुत्त पु० ३०