Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्रकृतांग-प्रथम अध्ययन-समय
कठिन शब्दों की व्याख्या-उक्कसं= उत्कर्ष-जिससे मनुष्य उकसा जाए-गर्वित हो जाए वह उत्कर्ष-मान । जलणं जिससे व्यक्ति अन्दर ही अन्दर जलता है, वह जलन यानी क्रोध । णूम नूथ का अर्थ है-जो प्रच्छन्न-अप्रकट-गहन-गूढ़ हों; वह माया। ममत्थं मध्यस्थ-अर्थात जो सारे संसार के प्राणियों के मध्य-अन्तर में रहता है, वह मध्यस्थ-लोभ । अथवा ममत्थं के बदले 'अज्मत्थं' पाठान्तर
चर्णिकार अर्थ करते हैं-- अज्मथो णाम अभिप्रेयः, स च लोमः"-अध्यस्थ यानी अभिप्रेत (अभीष्ट) और वह है लोभ ।
चतुर्थ उद्द शक समाप्त सूत्रकृतांग सूत्र प्रथम अध्ययन : समय-समाप्त
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३३ (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ५२
(ख) सूयगडंग चूणि (मू० पा० टिप्पण) पृ० १५
(क) मुक्तांग शीलाक वृत्ति पत्रांक १५