Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्रकृतांग-एकादश अध्ययन-मार्ग
___५००. यदि कोई देव या मनुष्य तुमसे पूछे तो उन्हें यह (आगे कहा जाने वाला) मार्ग बतलाना चाहिए। वह साररूप मार्ग तुम मुझसे सुनो।
५०१-५०२. काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित उस अतिकठिन मार्ग को मैं क्रमशः बताता हूँ। जैसे समुद्र मार्ग से विदेश में व्यापार करने वाले व्यापारी समुद्र को पार कर लेते हैं, वैसे ही इस मार्ग का आश्रय लेकर इससे पूर्व बहुत-से जीवों ने संसार-सागर को पार किया है, वर्तमान में कई भव्यजीव पार करते हैं, एव भविष्य में भी बहुत-से जीव इसे पार करेंगे। उस भावमार्ग को मैंने तीर्थंकर महावीर से सुनकर (जैसा समझा है) उस रूप में मैं आप (जिज्ञासुओं) को कहूँगा। हे जिज्ञासुजीवो ! उस मार्ग (सम्बन्धी वर्णन) को आप मुझसे सुने।
विवेचन-मार्ग सम्बन्धी जिज्ञासा, महत्त्व और समाधान की तत्परता-प्रस्तुत छह सूत्रगाथाओं में से तीन सूत्रगाथाओं में श्री जम्बूस्वामी आदि द्वारा गणधर श्री सुधर्मास्वामी से संसार-सागरतारक, सर्वदःख-विमोचक, अनुत्तर, शुद्ध, सरल तीर्थंकर-महावीरोक्त भाबमार्ग से सम्बन्धित प्रश्न पूछा गया है, साथ ही यह भी बताने का अनुरोध किया गया है, कोई सुलभबोधि संसारोद्विग्न देव या मानव उस सम्यग्मार्ग के विषय में हमसे पूछे तो हम क्या उत्तर दें? इसके बाद की तीन सूत्रगाथाओं में उक्त मार्ग का माहात्म्य बताकर उस सारभूत मार्ग के सम्बन्ध में जिज्ञासा का समाधान करने की तैयारी श्री सुधर्मास्वामी ने बताई है।
कठिन शब्दों को व्याख्या-'पडिसाहिन्जा'=प्रत्युत्तर देना चाहिए । 'मग्गसारं' =मार्ग का परमार्थ ।' अहिसामार्ग
५०३. पुढवोजोवा पुढो सत्ता, आउजीवा तहाऽगणी।
वाउजीवा पुढो सत्ता, तण रुक्ख सबोयगा ॥७॥ ५०४. अहावरा तसा पाणा, एवं छक्काय आहिया ।
इत्ताव ताव जीवकाए, नावरे विज्जती काए ॥८॥ ५०५. सव्वाहि अणुजुत्तीहि, मतिमं पडिलेहिया ।
सम्वे अकंतदुक्खा य, अतो सम्वे न हिंसया ।। ६ ॥ ५०६. एवं खु गाणिणो सारं, जं न हिंसति कंचणं ।
अहिंसा समयं चेव, एतावंतं विजाणिया ॥ १० ॥ ५०७. उड्डे अहे तिरियं च, जे केइ तस-थावरा।
सम्वत्थ विरति कुज्जा, संति निव्वाणमाहियं ॥ ११ ॥
१ सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक १९८-१९६ पर से।