Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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समोसरणं : बारसमं अज्झयणं
समवसरण : बारहवाँ अध्ययन
चार समवसरण : परतीर्थिक मान्य चार धर्मवाद
५३५. चत्तारि समोसरणाणिमाणि, पावाया जाई पुढो वयंति ।
किरियं अकिरियं विजयं ति तइयं, अण्णाणमाहंसु चउत्थमेव ॥ १॥
५३५. परतीर्थिक मतवादी (प्रावादुक ) जिन्हें पृथक्-पृथक् बतलाते हैं, वे चार समवसरण - वाद या सिद्धान्त ये हैं- क्रियावाद, अक्रियावाद, तीसरा विनयवाद और चौथा अज्ञानवाद ।
विवेचन - चार समवसरण : परतीर्थिक मान्य चार धर्मवाद- शास्त्रकार ने अध्ययन के प्रारम्भ में प्रतिपाद्य विषय सूचित कर दिया है। विश्व में प्रधानतः चार प्रकार के सिद्धान्त उस युग में प्रचलित थे, जिनमें सभी एकान्तवादों का समावेश हो जाता है । अन्य दार्शनिक (मतवादी ) एकान्त रूप से एक-एक को पृथक्-पृथक् मानते थे ।
इन सबका स्वरूप शास्त्रकार स्वयं यथास्थान बताएँगे ।
एकान्त अज्ञानवाद - समीक्षा
५३६ अण्णाणिया ता कुसला वि संता, असंथुया णो वितिगिछतिणा । restar आहु अकोवियाए, अणाणुवीयति मुर्स वदति ॥ २ ॥
५३६. वे अज्ञानवादी अपने आपको (वाद में ) कुशल मानते हुए भी संशय से रहित (विचिकित्सा को पार किये हुए) नहीं हैं । अतः वे असंस्तुत ( असम्बद्ध भाषी या मिथ्यावादी होने से अप्रशंसा पात्र) हैं। वे स्वयं अकोविद (धर्मोपदेश में अनिपुण ) हैं और अपने अकोविद (अनिपुण अज्ञानी) शिष्यों को उपदेश देते हैं । वे (अज्ञान पक्ष का आश्रय लेकर ) वस्तुतत्व का विचार किये बिना ही मिथ्याभाषण करते हैं । विवेचन - एकान्त अज्ञानवाद समीक्षा - प्रस्तुत सूत्रगाथा में एकान्त अज्ञानवाद की संक्षिप्त समीक्षा
की गई है ।