Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 470
________________ साबा ५६८ से ५७३ ४२१ सुसाधुओं के सुशील का याथातभ्य-इस प्रकार है-(१) सुसाधु गुरु के सान्निध्य में रहकर उनके निर्देशानुसार प्रवृत्ति करता है, और सूत्रोपदेशानुसार प्रवृत्ति करता है, (२) वह अनाचार सेवन करने में गुरु आदि से लज्जित होता है, (३) जीवादि तत्त्वों पर उसकी श्रद्धा दृढ़ होती है, (४) वह मायारहित व्यवहार करता है, (५) भूल होने पर आचार्यादि द्वारा अनुशासित होने पर भी अपनी चित्तवृत्ति शुद्ध रखता है, (६) वह मृदुभाषी या विनयादि गुणों से युक्त होता है, (७) वह सूक्ष्मार्थदर्शी एवं पुरुषार्थी होता (८) वह साध्वाचार में सहजभाव से प्रवृत्त रहता है, (6) वह निन्दा-प्रशंसा में सम रहता है, (१०) अकषायी होता है अथवा वीतराग पुरुष के समान अझंझाप्राप्त है, (११) जो ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि उच्च जाति का पूर्वाश्रमी होकर भी उच्च गोत्र का मद नहीं करता, वही याथातथ्य चारित्र में प्रवृत्त सुसाधु है, (१२) जो प्रवजित होकर परदत्तभोजी होकर किसी प्रकार का जातिमद नहीं करता। साधु की ज्ञानादि साधना में तथ्य-अतथ्य विवेक ५६८ णिक्किंचणे भिक्खू सुलूहजीवी, जे गारवं होति सिलोयगामी। आजीवमेयं तु अबुज्झमाणे, पुणो पुणो विप्परियासुवेति ॥१२॥ ५६६ जे भासवं भिक्खु सुसाधुवादी, पडिहाणवं होति विसारए य । आगाढपण्ण सुविभावितप्पा, अण्णं जणं पण्णसा परिभवेज्जा ॥१३।। ५७० एवं ण से होति समाहिपत्ते, जे पसा भिक्खु विउक्कसेज्जा। अहवा वि जे लाभमयावलित्ते, अण्णं जणं खिसति बालपण्णे ॥१४॥ ५७१ पण्णामयं चेव तवोमयं च, णिण्णामए गोयमयं च भिक्खू । आजीवगं चेव चउत्थमाहु, से पंडिते उत्तमपोग्गले से ॥१५।। ५७२ एताइं मदाई विगिच धोरे, ण ताणि सेवंति सुधीरधम्मा। ते सव्वगोत्तावगता महेसी, उच्चं अगोत्तं च गति वयंति ॥१६॥ ५७३ भिक्खू मुयच्चा तह दिट्ठधम्मे, गामं च णगरं च अणुप्पविस्सा। से एसणं जाणमणेसणं च, अण्णस्स पाणस्स अणाणुगिद्ध ॥१७॥ ५६८. जो भिक्षाजीवी साधु अकिंचन-अपरिग्रही है, भिक्षान्न से उदर पोषण करता है, रूखा-सूखा अन्त-प्रान्त आहार करता है। फिर भी यदि वह अपनी ऋद्धि, रस और साता (सुख सामग्री) का गर्व (गौरव) करता है, तथा अपनी प्रशंसा एवं स्तुति की आकांक्षा रखता है, तो उसके ये सब (अकिंचनता, ३ (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक २३४-२३५ ... (ख) सूत्र० गाथा० ५६२, ५६३, ५६६

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