Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
आहत्तहियं : तेरसमं अज्झयणं
याथातथ्य : तेरहवां अध्ययन समस्त यथातथ्य-निरूपण का अभिवचन
५५७ आहत्तयं तु पवेय इस्सं, नाणप्पकारं पुरिसस्स जातं ।
सतो य धम्म असतो असील, संति असंति करिस्सामि पाउं ॥१॥
५५७. मैं (सुधर्मास्वामी) याथातथ्य यथार्थ तत्त्व को बताऊंगा, तथा ज्ञान के प्रकार (सम्यग्ज्ञानदर्शन-चारित्र के रहस्य) को प्रकट करूया, एवं पुरुषों (प्राणियों) के अच्छे और बुरे गुणों को कहूँगा। तथा उत्तम साधुओं के शील और असाधुओं के कुशील का एवं शान्ति (मोक्ष) और अशान्ति (संसार) का स्वरूप भी प्रकट करूंगा।
विवेचन-याथातथ्य के निरूपण का अभिवचन-अध्ययन की इस प्रारम्भिक गाथा में, समग्र अध्ययन में प्रतिपाद्य विषयों के यथातथ्य निरूपण का श्रीसुधर्मास्वामी का अभिवचन अंकित किया गया है । प्रस्तुत गाथा में चार विषयों के यथार्थ निरूपण का अभिवचन है
(१) ज्ञानादि (सम्यग्ज्ञान, दर्शन, और चारित्र) का रहस्य । (२) सत्पुरुष और असत्पुरुष के प्रशस्त-अप्रशस्त गुण, धर्म, स्वभाव आदि का निरूपण।
(३) सुसाधुओं के शील, सदाचार, सदनुष्ठान और कुसाधुओं के कुशील, अनाचार और असदनुष्ठान का स्वरूप,
(४) सुसाधुओं को समस्तकर्मक्षयरूप शान्ति (मुक्ति) की प्राप्ति और कुसाधुओं को जन्म-मरणरूप अशान्ति (संसार) की प्राप्ति का रहस्य व कारण ।
पाठान्तर-'पुरिसस्स मातं' के बदले पाठान्तर है-'पुरिसस्स भावं' अर्थ के अनुसार यह पाठ संगत है।'
१ सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक २३२ का सारांश