Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्रकृतांग-बारहवां अध्ययन-समवसरण ५४२. जहा य अंधे सह जोतिणा वि, रूवाई णो पस्सति होणनेत्ते।
संतं पि ते एवमकिरियआता, किरियं ण पस्संति निरुद्धपण्णा ।।८।। ५४३. संवच्छरं सुविणं लक्खणं च, निमित्तं देहं उप्पाइयं च ।
अटं ठगमेतं बहवे अहित्ता, लोगंसि जाणंति अणागताई ॥६॥ ५४४. केई निमित्ता तहिया भवंति, केसिंचि तं विप्पडिएति णाणं ।
ते विज्जभावं अणहिज्जमाणा, आहंसु विज्जापलिमोक्खमेव ॥१०॥
५३८. (उत्तरार्द्ध) तथा लव यानी कर्मबन्ध की शंका करने वाले अक्रियावादी भविष्य और भूतकाल के क्षणों के साथ वर्तमानकाल का कोई सम्बन्ध (संगति) न होने से क्रिया (और तज्जनित कर्मबन्ध) का निषेध करते हैं।
५३६. वे (पूर्वोक्त अक्रियावादी) अपनी वाणी से स्वीकार किये हुए पदार्थ का निषेध करते हुए मिश्रपक्ष को (पदार्थ के अस्तित्व और नास्तित्व दोनों से मिश्रित विरुद्धपक्ष को) स्वीकार करते हैं। वे स्याद्वादियों के कथन का अनुवाद करने (दोहराने) में भी असमर्थ होकर अति मूक हो जाते हैं। वे इस पर-मत को द्विपक्ष-प्रतिपक्ष युक्त तथा स्वमत को प्रतिपक्षरहित बताते हैं। एवं स्यादवादियों के हेत वचनों का खण्डन करने के लिए वे छलयुक्त वचन एवं कर्म (व्यवहार) का प्रयोग करते हैं।
५४०. वस्तुतत्व को न समझने वाले वे अक्रियावादी नाना प्रकार के शास्त्रों का कथन (शास्त्रवचन प्रस्तुत) करते हैं। जिन शास्त्रों का आश्रय लेकर बहुत-से मनुष्य अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण करते हैं।
५४१. सर्वशून्यतावादी (अक्रियवादी) कहते हैं कि न तो सूर्य उदय होता है, और न ही अस्त होता है तथा चन्द्रमा (भी) न तो बढ़ता है और न घटता है, एवं नदी आदि के जल बहते नहीं और न हवाएं चलती हैं। यह सारा लोक अर्थशून्य (वन्ध्य या मिथ्या) एवं नियत (निश्चित-अभाव) रूप है।
५४२. जैसे अन्धा मनुष्य किसी ज्योति (दीपक आदि के प्रकाश) के साथ रहने पर भी नेत्रहीन होने से रूप को नहीं देख पाता; इसी तरह जिनकी प्रज्ञा ज्ञानावरण के कारण र
वे बुद्धिहीन अक्रियावादी सम्मुख विद्यमान क्रिया को भी नहीं देखते ।
५४३. जगत् में बहुत-से लोग ज्योतिषशास्त्र (संवत्सर) स्वप्नशास्त्र, लक्षणशास्त्र, निमित्तशास्त्र, शरीर पर प्रादुर्भूत-तिल-मष आदि चिन्हों का फल बताने वाला शास्त्र, तथा उल्कापात दिग्दाह, आदि का फल बताने वाला शास्त्र, इन अष्टांग (आठ अंगों वाले) निमित्त शास्त्रों को पढ़ कर भविष्य की बातों को जान लेते हैं।
५४४. कई निमित्त तो सत्य (तथ्य) होते हैं और किन्हीं-किन्हीं निमित्तवादियों का वह ज्ञान विपरीत (अयथार्थ) होता है । यह देखकर विद्या का अध्ययन न करते हुए अक्रियावादी विद्या से परिमुक्त होने-त्याग देने को ही कल्याणकारक कहते हैं।