Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम उद्देशक : गाषा-९७. मायाचार का कटुफल
६७ जइ वि य णिगिणे किसे चरे, जइ वि य भुजिय मासमंतसो।
जे इह मायाइ मिन्जती, आगंता गम्भायऽणंतसो ॥६॥ ६७. जो व्यक्ति इस संसार में माया आदि से भरा है, वह यद्यपि (चाहे) नग्न (निर्वस्त्र) एवं (घोर तप से) कृश होकर विचरे और (यद्यपि) कदाचित् मासखमण करे; किन्तु (माया आदि के फलस्वरूप) वह अनन्त काल तक गर्भ में आता रहता है - गर्भवास को प्राप्त करता है।
विवेचन-मायादि युक्त उत्कृष्ट क्रिया और तप : संसार-वृद्धि के कारण-प्रस्तुत सूत्र गाथा में कर्मक्षय के लिए स्वीकार की गयी माया युक्त व्यक्ति की नग्नता, कृशता एवं उत्कृष्ट तपस्या को कर्मबन्ध की और परम्परा से जन्म-मरण रूप संसार परिभ्रमण की जड़ बतायी जाती है, कारण बताया गया है-जे इह मायाइ मिज्जई' । आशय यह है कि जो साधक निष्किञ्चन है, निर्वस्त्र है, कठोर क्रियाओं एवं पंचाग्नि तप आदि से जिसने शरीर को कृश कर लिया है, उत्कृष्ट दीर्घ तपस्या करता है, किन्तु यदि वह माया(कपट), दम्भ, वञ्चना, धोखाधड़ी; अज्ञान एवं क्रोध, अहंकार, लोभ, मोह आदि से लिपटा हुआ है, तो उससे मोक्ष दूराति दूर होता चला जाता है, वह अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण करता है । यहाँ माया शब्द से उपलक्षण से समस्त कषायों और आभ्यन्तर परिग्रहों का ग्रहण कर लेना चाहिए । वास्तव में कर्मों से मुक्त हुए बिना मक्ति नहीं हो सकती, और कर्मों से मुक्ति राग, द्वेष, मोह, कषाय आदि के छुटे बिना हो नहीं सकती। व्यक्ति चाहे जितनी कठोर साधना कर ले, जब तक उसके अन्तर से राग, द्वेष, मोह, माया आदि नहीं छूटते, तब तक वह चतुर्गति रूप संसार में ही अनन्त बार परिभ्रमण करता रहेगा। यद्यपि तपस्या साधना कर्म-मुक्ति का कारण अवश्य है, लेकिन वह राग, द्वेष, काम, मोह, मिथ्यात्व, अज्ञान आदि से युक्त होगी तो संसार का कारण बन जायेगी।
इसी आशय से उत्तराध्ययन सूत्र, इसिभासियाइं एवं धम्मपद आदि में बताया गया है कि जो अज्ञानी मासिक उपवास के अन्त में कुश की नोंक पर आये जितना भोजन करता है, वह जिनोक्त रत्नत्रय रूप धर्म की सोलहवीं कला को भी नहीं पा सकता।"
- 'जे इह मायाइ.."णंत सो' वाक्य की व्याख्या-वृत्तिकार के अनुसार-जो (तीथिक) इस लोक में माया आदि से परिपूर्ण है, उपलक्षण से कषायों से युक्त है, वह गर्भ में बार-बार आता रहेगा, अनन्त बार. यानी अपरिमित काल तक । चूर्णिकार 'जइ विह मायाइ मिज्जति "ऐसा पाठान्तर मानकर व्याख्या
१४ देखिये- इसी के समर्थक पाठ:(क) मासे-मासे तु जो बालो कुसग्गेणं तु भुजए । न सो सुयक्खाय धम्मस्स कलं अग्घइ सोलसिं ॥ ..
-उत्तराध्ययन अ०६/४४ (ख) मासे-मासे कुसग्गेन बालो भुजेय्य भोजनं.। . . . न सो संखत धम्मानं कलं अग्घति सोलसि ॥
-धम्मपद ७० (ग) इन्दनागेण अरहता इसिणा बुइतं-मासे मासे य जो बालो कुसग्गेण माहारए।
ण से सुक्खाय धम्मस्स अग्घती सतिमं कलं ॥१३॥
-इंसिभासियाई ब० १३ पृ० १३