Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्रकृतांग- दशम अध्ययन - समाधि समाधि एवं तपः समाधि की प्राप्ति के लिए प्रेरणा सूत्र हैं । समाधि प्राप्ति के ये प्र ेरणा सूत्र इस प्रकार है - मूल-गुण रूप आचार समाधि प्राप्ति के लिए - ( १ ) समाधि धर्म की रक्षा के लिए हिंसादि पापों का सर्वथा त्याग करे, (२) समाधि-मर्मज्ञ साधु हिंसादि पापकर्मों से निवृत्त हो जाए, क्योंकि हिंसा से उत्पन्न पापकर्म नरकादि दुःखों के उत्पादक, वैरानुबन्धी और महाभयजनक है । (३) आप्तगामी साधु मनवचन काया से कृत-कारित अनुमोदित रूप से असत्य आदि पापों का आचरण न करे ।
उत्तरगुण रूप आचार समाधि के लिए - (१) निर्दोष आहार प्राप्त होने पर भी मनोज्ञ के प्रति राग और अमनोज्ञ के प्रति द्वेष करके चारित्र को दूषित न करे, (२) उस आहार में भी न तो मूच्छित हो, न ही उसे बार-बार पाने की लालसा रखे, (३) धृतिमान हो, (४) पदार्थों के ममत्व या संग्रह से मुक्त हो, (५) पूजा-प्रतिष्ठा और कीर्ति की कामना न करे, (६) सहजभाव से शुद्ध संयम - पालन में समुद्यत रहे । तप समाधि प्राप्ति के लिए - ( १ ) दीक्षा ग्रहण करके साधु अपने जीवन के प्रति निरपेक्ष होकर हे असंयमी जीवन जीने की आकांक्षा न रखे, (२) शरीर को संस्कारित एवं पुष्ट न करता हुआ काय व्युत्सर्ग करे, (३) तपश्चर्यादि के फल की आकांक्षा ( निदान) को मन से निकाल दे, (४) न जीने की इच्छा करे, न ही मरने की, (५) संसार चक्र ( कर्मबन्ध) के कारणों से या माया से विमुक्त रहकर संयम में पराक्रम करे ।
पाठान्तर और व्याख्या - वेराणुबंधीणि महत्मयाणि' के बदले चूर्णिसम्मत पाठान्तर है - 'ग्वाणभूते व परिव्वज्जा', व्याख्या इस प्रकार है - " जैसे युद्ध आदि से निर्वृत- लौटा हुआ पुरुष व्यापार-रहित होने से किसी की हिंसा करने में प्रवृत्त नहीं होता, वैसे ही सावद्य कार्य से रहित पुरुष भी किसी की हिंसा न करता हुआ संयम में पुरुषार्थ क रे । "
॥ समाधि : दशम अध्ययन समाप्त ॥
५ सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक १६३ से १९५ तक का सारांश
६ (क) सूयगडंग चूर्णि (मू० पा० टिप्पण) पृ० ८८
(ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक १६४