Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्रकृतांग - तृतीय अध्ययन - उपसर्गपरिज्ञ
१८८.गंतु ं तात पुणाऽऽगच्छे ण तेणऽसमणो सिया । अकामगं परक्कम्मं को ते वारेउमरहति ॥ ७ ॥ १८६. जं किचि अणगं तात तं पि सव्वं समीकतं । हिरण्णं ववहारादी तं पि दासामु ते वयं ॥ ८ ॥ १०. इच्चेव णं सुसेहंति कालुनिया समुट्टिया ।
विबद्धो नातिसंह ततोऽगारं पधावति ॥ ६ ॥ १९१. जहा रुमखं वणे जायं मालया पडिबंधति । एवं णं पडिबंधंति णातओ असमाहिणा ॥ १० ॥ १६२. विबद्धो णातिसंगेहि हत्थी वा वि नवग्गहे ।
पिट्ठतो परिसम्पति सूतोगो व्व अदूरगा ॥ ११ ॥ १६३. एते संगा मणुस्साणं पाताला व अतारिमा ।
star जत्थ य की संति नातिसंगेहि मुच्छिता ॥ १२ ॥ १४. तं च भिक्खू परिण्णाय सव्वे संगा महासवा ।
जीवितं नाभिकखेज्जा सोच्चा धम्ममणुत्तरं ॥ १३ ॥
१९५. अहिमे संति आबट्टा कासवेण पवेदिता ।
बुद्धा जत्थावसप्पति सोयंति अबुहा जहि ॥ १४ ॥
१८३. कई-कई ज्ञातिजन साधु को देखकर उसे घेर कर रोते हैं- विलाप करते हैं, (वे कहते हैं) “तात ! अब आप हमारा भरण-पोषण करें, हमने आपका पालन-पोषण किया है। हे तात! (अब) हमें आप क्यों छोड़ते हैं ?
१८४. हे पुत्र (तात) ! तुम्हारे पिता अत्यन्त बूढ़ हैं, और यह तुम्हारी बहन (अभी ) छोटी है । हे पुत्र ! ये तुम्हारे अपने सहोदर भाई हैं । (फिर) तुम हमें क्यों छोड़ रहे हो ?
१८५. हे पुत्र ! अपने माता-पिता का पालन-पोषण करो। ऐसा करने से ही लोक (लोक - इह - लोक-परलोक) सुधरेगा - बनेगा। हे तात ! यही लौकिक आचार है कि जो पुत्र हैं, वे अपने माता-पिता का पालन करते हैं ।
१८६. हे तात ! तुम्हारे उत्तरोत्तर (एक के बाद एक) जन्मे हुए पुत्र मधुरभाषी (तुतलाते हुए मीठी बोली में बोलते हैं तथा वे अभी बहुत छोटे हैं। हे तात ! तुम्हारी पत्नी अभी नवयोवना है, वह (कहीं) दूसरे पुरुष के पास न चली जाए ।