Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्रकृतांग-चतुर्थ अध्ययन-स्त्रीपरिमा वह भी परक्रिया है, (३) विषयभोग की सामग्री देकर दूसरे की सहायता करना' भी परक्रिया है,
और (४) दूसरे से-गृहस्थ नर-नारी से अपने पैर आदि दबवाना, पैर धुलाना आदि सेवा लेना भी फ्सकया है।
स्त्रीसंगपरित्याग के सन्दर्भ में उपर्युक्त चारों अर्थों की छाया में काम-विकार-सेवन की दृष्टि से परक्रिया का मन-वचन-काया से सर्वथा त्याग करे, यही इस प्रेरणा का आशय है।
तात्पर्य यह है कि औदारिक एवं दिव्य कामभोगरूप परक्रिया के लिए वस्तुतत्त्व ज्ञानी साघु मन से भी विचार न करे, दूसरे को भी मन से परक्रिया के लिए प्रेरित न करे, ऐसा (परक्रिया का) विचार करने को मन से भी अच्छा न समझे। इसी प्रकार वचन और काया से भी इस प्रकार की परक्रिया का त्याग तीन करण से समझ लेना चाहिए। इस प्रकार औदारिक कामभोगरूप फरक्रिया त्यामा के भेद हए. वैसे ही दिव्य (वैक्रिय) कामभोगरूप परक्रिया त्याग के भी भेद होते हैं । यो प्रकार की परक्रिया (अब्रह्मचर्य-मैथुनसेवनरूप) का साधु त्याग करे, और १८ प्रकार से ब्रह्मचर्यव्रत को सुरक्षित रखे। ___अथवा परक्रियात्याग का अर्थ दशविध ब्रह्मचर्य समाधि स्थानः भंगा करने काली स्त्री-संगरूप उपसर्म की कारणभूत अब्रह्मचर्यवर्द्धक १० प्रकार की क्रियाओं का त्याग भी हो सकता है। के दस अब्रह्मचर्यवर्धक पक्रियाएँ ये हैं
(१): निग्रंन्थ ब्रह्मचारी स्त्री-पशु-नपुंसक संसक्त शयनासन या स्थान का सेक्न करे। (२) स्त्रियों के शृगार, विलास आदि की कामवर्द्धक विकथा करे।
(३) स्त्रियों के साथ एक आसन या शय्या पर बैठे या स्त्रियाँ जिस आसन या स्थानादि पर बैठी हों, उस पर तुरन्त ही बैठे। स्त्रियों के साथ अतिसंसर्ग, अतिसंभाषण करे।
(४) स्त्रियों की मनोहर, मनोरम इन्द्रियों या अंगोपांगों को कामक्किार की दृष्टि से देखें, ठकठकी लगाए निरीक्षण करे।
(५) दीवार, कपड़े के पर्दे, या भीत के पीछे होने वाले स्त्रियों के नृत्य, गीत, कन्दन विज्ञाप, रुदन हास्य, विलास आदि शब्दों को सुने ।
(१) स्त्रियों के साथ पूर्वरत, पूर्वक्रीड़ित कामभोगों का स्मरण करे। (७) सरस, स्निग्ध एवं स्वादिष्ट कामवद्धक आहार करे। (८) अतिमात्रा में आहार-पानी करे । (९) शरीर का शृंगार करे, मंडन-विभूषा करे।
६ (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ११६, १२०
(ख) देखिये आचा० श्रुत० १३ वाँ अध्ययन परक्रियासप्तक आचा० विवेचन पृ०.३४४ सू० ६६० से ७२६ तक ।