Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्रकृतांग-बाठ अव्यवन-महावीरस्तव उपस्थित-उद्यत रहे । 'आरं परं (पारं) च' आरं= इहलोक अथवा मनुष्यलोक, पारं (परं)=परलोक या नारकादिलोक । चणि कार सम्मत पाटान्तर है-परं परं च' अर्थ प्रायः समान है।" फलश्रति
३८०. सोचा य धम्मं अरहंतभासियं, समाहितं अट्ठपोवसुद्ध। तं सद्दहता य जणा अणाऊ, इंदा व देवाहिव आगमिस्संति ॥ २६ ॥
त्ति बेमि। ॥ महावीरत्यवो छठें अज्झयणं सम्मत्त ॥
३८०. श्री अरिहन्तदेव द्वारा भाषित, सम्यक् रूप से उक्त युक्तियों और हेतुओं से अथवा अर्थों और पदों से शुद्ध (निर्दोष) धर्म को सुनकर उस पर श्रद्धा (श्रद्धापूर्वक सम्यक् आचरण) करने वाले व्यक्ति आयुष्य (कर्म) से रहित-मुक्त हो जाएंगे, अथवा इन्द्रों की तरह देवों का आधिपत्य प्राप्त करेंगे।
-यह मैं कहता हूँ। विवेचन-फलश्रुति-प्रस्तुत अध्ययन का उपसंहार करते हुए शास्त्रकार इस अन्तिम गाथा में भ० महावीर द्वारा प्ररूपित श्रुत-चारित्ररूप धर्म का श्रवण, श्रद्धान एवं आचरण करने वाले साधकों को उसकी फलश्रुति बताते हैं-सोच्चा य धम्म ....."आगमिस्संति ।
॥ महावीरस्तव षष्ठ अध्ययन समाप्त ॥
१४ (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक १५१
(ख) सूयगडंग चूर्णि (मू० पा० टिप्पण) पृ० ६७