Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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गाथा ४१४ से ४१६
३४७ ४१६. एतं सकम्मविरियं, बालाणं तु पवेदितं ।।
एत्तो अकम्मविरियं पंडियाणं सुणेह मे ॥ ६ ॥ ४१४. कई लोग प्राणियों का वध करने के लिए तलवार आदि शस्त्र (चलाना) अथवा धनुर्वेद आदि शास्त्र सीखते हैं। कई अज्ञजीव प्राणियों और भूतों के घातक (कष्टदायक) मंत्रों को पढ़ते हैं।।
४१५. माया करने वाले व्यक्ति माया (छल-कपट) करके कामभोगो में प्रवृत्त होते हैं । अपने सुख के पीछे अन्धी दौड़ लगाने वाले वे लोग प्राणियों को मारते, काटते और चीरते हैं।
४१६. असंयमी व्यक्ति मन से, वचन से और काया से अशक्त होने पर भी (लौकिक शास्त्रों की उक्ति मानकर) इस लोक और परलोक दोनों के लिए दोनों तरह से (स्वयं प्राणिवध करके और दूसरों से कराके) जीवहिंसा करते हैं।
४१७. प्राणिघातक, वैरी (शत्रु) बनकर अनेक जन्मों के लिए (जीवों से) वैर बाँध लेता (करता) है, फिर वह नये वैर में संलग्न हो जाता है । (वास्तव में) जीवहिंसा (आरम्भ) पाप की परम्परा चलाती है । (क्योकि हिंसादिजनित) पापकार्य अन्त (विपाक-फलभोगकाल) में अनेक दुःखों का स्पर्श कराते हैं ।
४१८. स्वयं दुष्कृत (पाप) करने वाले जीव साम्परायिक कर्म बांधते हैं, तथा वे अज्ञानी जीव राग और द्वेष का आश्रय लेकर बहुत पाप करते हैं।
४१६. (पूर्वार्द्ध) यह अज्ञानी जनों का सकर्मवीर्य (बालवीर्य) कहा गया है ।...'
विवेचन-बालजनों का सकर्मवीर्य : परिचय और परिणाम-इन षट्सूत्रगाथाओं में सकर्मवीर्य का प्रयोग प्रमादी-अज्ञजनों द्वारा कैसे-कैसे और किन-किन प्रयोजनों से किया जाता है ? इसका परिचय और इसका दुष्परिणाम प्रस्तुत किया गया है ।
ये सकर्मवीर्य कैसे ?-पूर्वोक्त गाथाओं में बताए हुए जितने भी पराक्रम हैं, वे सभी सकर्मवीर्य या बालवीर्य इसलिए हैं, कि ये प्राणिघातक हैं, प्राणिपीड़ादायक हैं, कषायवर्द्धक हैं, वैरपरम्परावर्द्धक हैं, रागद्वेषवर्द्धक हैं, पाप कर्मजनक हैं।
'सत्य' शब्द के विभिन्न आशय-वृत्तिकार ने 'सत्थं' शब्द के दो संस्कृत रूपान्तर किये हैं-शस्त्र और शास्त्र । तलवार आदि शस्त्र तो प्राणिघातक हैं ही, निम्नोक्त शास्त्र भी प्राणिविघातक हैं-(१) धनुर्वेद (जिसमें जीव मारने का लक्ष्यवेध किया जाता है), (२) आयुर्वेद-जिसमें कतिपय रोगों का निवारण प्राणियों के रक्त, चर्बी, हड्डी, मांस एवं रस आदि से किया जाता है । (३) दण्ड-नीतिशास्त्र (जिसमें अपराधी को शूली या फांसी पर चढ़ाने की विधि होती है, (४) अर्थशास्त्र (कौटिल्य)-जिसमें
के लिए दूसरों को ठगने का उपाय बताया गया हो, (५) कामशास्त्र (जिसमें मैथन प्रवत्ति सम्बन्धी अशुभ विचार है)। इन सभी शास्त्रों का आश्रय लेकर अज्ञजन विविध पापकर्मों में प्रवृत्त होकर पापकर्म का बन्ध करते हैं।
४ सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक १६८-१६६ का सारांश