Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
समाधि - दशम अध्ययन प्राथमिक
→ सूत्रकृतांग सूत्र (प्र० श्रु० ) के दसवें अध्ययन का गुणनिष्पन्न नाम 'समाधि' है ।
- समाधि शब्द चित्त की स्वस्थता, सात्त्विक सुखशान्ति, सन्तुष्टि, मनोदुःख का अभाव, आनन्द, प्रमोद, शुभध्यान, चित्त की एकाग्रतारूप ध्यानावस्था, समता, रागादि से निवृत्ति, आत्मप्रसन्नता आदि अर्थों में प्रयुक्त होता है ।"
नियुक्तिकार ने नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव रूप से ६ प्रकार से समाधि का निक्षेप किया है। नाम समाधि और स्थापना समाधि सुगम है । द्रव्यसमाधि मुख्यतया चार प्रकार से होती है - (१) जिस द्रव्य के खाने-पीने से शान्ति प्राप्त हो, (२) मनोज्ञ शब्दादि विषयों की प्राप्ति होने पर श्रोत्रादि इन्द्रियों की तुष्टि हो, (३) परस्पर विरोधी दो या अनेक द्रव्यों के मिलाने से स्वाद की वृद्धि (पुष्टि) होती हो अथवा ( ४ ) तराजू पर जिस वस्तु को चढ़ाने से दोनों पलड़े समान हो । क्षेत्रसमाधि वह है - जिस क्षेत्र में रहने से शान्ति समाधि प्राप्त हो, कालसमाधि का अर्थ है - जिस ऋतु, मास या काल • शान्ति प्राप्त हो । भावसमाधि का अर्थ है -. चित्त की स्वस्थता, शान्ति, एकाग्रता, समता, संतुष्टि, प्रसन्नता आदि या जिन ज्ञानादि गुणों द्वारा समाधि लाभ हो । "
D प्रस्तुत अध्ययन में भावसमाधि (आत्मप्रसन्नता) के सम्बन्ध में प्रकाश डाला गया है, भावसमाधि ज्ञान-दर्शन- चारित्र-तप रूप है । दशवैकालिक सूत्र में विनयसमाधि, श्रुतसमाधि, तपःसमाधि और आचारसमाधि का ( प्रत्येक के चार-चार भेद सहित ) उल्लेख है, ये भी भावसमाधि के अन्तर्गत हैं । दशाश्रुतस्कन्ध के अनुसार उक्त बीस असमाधि स्थानों से दूर रहना भी भावसमाधि है । सम्यक्चारित्र में स्थित साधक चारों भावसमाधियों में आत्मा को स्थापित कर ता है ।
१ पाइअ सद्दमहण्णवो पृ० ८७०
२ (क) सूत्रकृतांग नियुक्ति गा० १०३ से १०६ तक
(ख) सूत्र कृ० शी० वृत्ति पत्रांक १८६-१८७
३ (क) दशवैकालिक सूत्र अ० ६, उद्देशक चार में ४ प्रकार की समाधियों का वर्णन ।
(ख) दशाश्रुतस्कन्ध प्रथम दशा में २० प्रकार के समाधि स्थान ।
(ग) दशाश्रुतस्कन्ध में चित्त समाधि प्राप्त होने के १० स्थान (कारण)
- आयारदशा पृ० १ - आयारदशा पृ० ३४