Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्रकृतांग - पंचम अध्ययन-नरक विभक्ति अज्ञानी जीव अपने जीवन के लिए हिंसाद पापकर्म करते हैं, वे घोर रूप वाले, घोर अन्धकार से युक्त तीव्रतम ताप (गर्मी) वाले नरक में गिरते हैं ।
३०३-३०४. जो जीव अपने विषयसुख के निमित्त तस और स्थावर प्राणियों की तीव्र रूप से हिंसा करता है, जो (लूषक) अनेक उपायों से प्राणियों का उपमर्दन करता है, तथा अदत्तहारी (बिना दिये परवस्तु का हरण कर लेता है, एवं (आत्महितैषियों द्वारा ) सेवनीय ( या श्रेयस्कर ) संयम का थोड़ा-सा भी अभ्यास (सेवन) नहीं करता, जो पुरुष पाप करने में घृष्ट है, अनेक प्राणियों का घात करता है, जिसकी क्रोधादिकषायाग्नि कभी बुझती नहीं, वह अज्ञानी जीव अन्तकाल ( मृत्यु के समय ) में नीचे घोर अन्धकार (अन्धकारमय नरक) में चला जाता है, (और वहाँ ) सिर नीचा किये (करके) वह कठोर पीड़ास्थान को प्राप्त करता है ।
विवेचन-नरक के सम्बन्ध में स्वयं उद्भावित जिज्ञासा - प्रस्तुत पाँच सूत्रगाथाओं (३०० से ३०४ तक) में से प्रथम सूत्रगाथा में श्री सुधर्मास्वामी द्वारा नरक सम्बन्धी स्वयं उद्भूत जिज्ञासा है और अवशिष्ट चार गाथाओं में द्वितीय जिज्ञासा का समाधान अंकित किया गया है ।
जिज्ञासा : नरक के सम्बन्ध में - पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी ने नरक के सम्बन्ध में अपने अनुभव श्री जम्बूस्वामी आदि को बताते हुए कहा कि मैंने केवलज्ञानी महर्षि भगवान् महावीर के समक्ष अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत की थी- "भगवन् ! मैं नरक और वहाँ होने वाले तीव्र संतापों और यातनाओं से अनभिज्ञ हूँ । आप सर्वज्ञ हैं । आपसे त्रिकाल - त्रिलोक की कोई भी बात छिपी नहीं । आपको अनुकूलप्रतिकूल अनेक उपसर्गों को सहन करने का अनुभव है । आप समस्त जीवों की गति आगति, क्रिया-प्रतिक्रिया, वृत्ति प्रवृत्ति आदि को भलीभांति जानते हैं । अतः आप यह बताने की कृपा करें कि (१) नरक कैसी-कैसी पीड़ाओं से भरे हैं ? और (२) कौन जीव किन कारणों से नरक को प्राप्त करते हैं ?
समाधान: द्वितीय जिज्ञासा का - श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा- मेरे द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर महानुभाव, आशुप्रज्ञ एवं काश्यपगोत्रीय भगवान् महावीर ने (द्वितीय) जिज्ञासा का समाधान दो विभागों में किया - ( १ ) नरकभूमि कैसी है ? (२) नरक में कौन-से प्राणी जाते हैं ?
सर्वप्रथम चार विशेषणों द्वारा नरकभूमि का स्वरूप बताया है - 'दुहमट्ठबुग्गं आदीणियं दुक्कडियं' - अर्थात् - (१) नरक दुःखहेतुक ( दुःख का कारण दुःख देने के लिए निमित्त रूप ) हैं, या दुःखार्थ (दुःखप्रयोजनभूत - केवल दुःख देने के लिए ही बना हुआ ) है । अथवा दुःखरूप ( बुरे कर्मों के फलों के कारण) है, अथवा नरक स्थान जीवों को दुःख देता है, इसलिए वह दुःखदायक है, या असातावेदनीय कर्म के उदय से मिलने के कारण नरकभूमि तीव्र पीड़ारूप हैं, इसलिए यह दुःखमय है । ( २ ) नरक दुर्ग हैनरक भूमि को पार करना दुर्गम होने से, तथा विषम एवं गहन होने से यह दुर्ग है । अथवा असर्वज्ञों द्वारा दुर्गम्य- दुर्विज्ञेय है, क्योंकि नरक को सिद्ध करने वाला कोई इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है । (३) नरक आदीनिक - अत्यन्त दीन प्राणियों का निवास स्थान है। यानी चारों ओर दीन जीव निवास करते हैं । तथा (४) नरक दुष्कृतिक है, दुष्कृत - दुष्कर्म करने वाले जीव वहां रहते हैं, इसलिए दुष्कृतिक है, अथवा दुष्कृत ( बुरा कर्म, पाप) या दुष्कृत (पाप) का फल विद्यमान रहता है, इसलिए वह दुष्कृतिक है। अथवा जिन पापीजनों ने पूर्व जन्म में दुष्कृत किये हैं, उनका यहाँ निवास होने के कारण नरक दुष्कृति कहलाता है ।