Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्रकृतांग-पंचम अध्ययन-मरकनिमक्ति
को सुम-समझकर इनसे बचे, हिंसादि पापों में प्रवृत्त न हो, और स्व-पर कल्याणरूप संयमसाधना
में अहर्निश संलग्न रहे, यही इस अध्ययन का उद्देश्य है।' D 'नरकविभक्ति' का एक अर्थ यह भी है-नरक के प्रकार, भूमियां उनकी लम्बाई-चौड़ाई-मोटाई
आदि विभिन्न नारकों की स्थिति, लेश्या, नरकों के विविध दुःख, दुःखप्रदाता नरकपाल आदि
समस्त विषयों का विभाग रूप से जिस अध्ययन में निरूपण हो। 0 मरक सात हूँ-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धुमप्रभा, सम:प्रभा, महातमःप्रभा।
इनके सात रुढ़िगत नाम गोत्र हैं-धम्मा, बंशा, शैला, अंजना, अरिष्टा, मघा और भाषचती। ये ही सात नरकभूमियां हैं, जो एक-दूसरी के नीचे असंख्य योजनों के अन्तर पर घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश के आधार पर स्थित हैं । वे नरकभूमियाँ क्रमशः ३० लाख, २५ लाख, १५ लाख, १० लाख, पाँच कम एक लाख और पांच आवासों में विभक्त हैं। नरकवासियों की उत्कष्ट स्थिति-नरक में क्रमशः १, ३, ७, १०, १७, २२ और ३३ सागरोपमकाल
की स्थिति है। - नारकों की आकृति-प्रकृति-नारक जीवों की लेश्या, परिणाम, आकृति अशुभतर होती है, उनकी
वेदना असह्यतर होती है, उनमें विक्रियाशक्ति होती हैं जिससे शरीर के छोटे-बड़े विविध रूप बना सकते हैं। नरक में प्राप्त होने वाले विविध दुःख-मुख्यतया तीन प्रकार के हैं-(१) परस्परकृत । (२) क्षेत्र
जन्य और (३) परमाधार्मिककृत ।' - नारकों को दुःख देने वाले परमाधार्मिक असुर-नरकपाल १५ प्रकार के हैं-(१) अम्ब, (२) अम्बर्षि,
(३) श्याम, (४) सबल, (५) रौद्र, (६) उपरुद्र, (७) काल, (८) महाकाल, (६) असिपत्र, (१०) धनुष, (११) कुम्भ, (१२) बालु, (१३) वैतरणी, (१४) खरस्वर और (१५) महाघोष । ये असुर स्वभाव से बड़े कर होते हैं । ये नारकों को पूर्वकृत पापकर्म याद दिलाकर उन्हें विविध प्रकार
से भयंकर यातना देते हैं। 0 सूत्रगाथा ३०० से प्रारम्भ होकर ३५१ सूत्रगाथा पर पंचम अध्ययन समाप्त होता है।
८ (क) महारंभेण महापरिग्गहेण पंचेन्दियवहेणं कुणिमाहारेणं-स्था०४ (ख) 'बह्वारम्भ परिग्रहत्वं च नारकस्यायुषः'
-तत्त्वार्थ अ०३० ६ (क) सूत्रकृ० नियुक्ति गा०६८ से ८४ तक
(ख) सूत्रकृ० शी० वृत्ति पत्रांक १२३ से १२५ तक