Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्रकृतांग — षष्ठ अध्ययन - महावीर स्तव
३६८. अणुत्तरगं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता । सिद्धि गति साहमणंत पत्ते, नाणेण सीलेण य दंसणेण ।।१७।। ३६९. रुक्खेसु णाते जह सामली वा, जंसी रति वेदयंती सुवण्णा ।
वसु या नंदणमाह सेट्ठे, णाणेण सीलेण य भूतिपन्न ||१८|| ३७०. थणियं व सद्दाण अणुत्तरे तु चंदो व ताराण महाणुभागे ।
गंधे या चंदणमाहु सेट्ठे, सेट्ठे मुणोणं अपडिण्णमाहु ||१६|| ३७१. जहा सयंभू उदहीण सेट्ठे, जागेसु या धणिदमाह सेट्ठे । खोतोदए वा रसवेजयंते, तवोवहाणे मुणिवेजयंते ||२०||
३७२. हत्थीसु एरावणमाहु जाते, सोहे मियाणं सलिलाण गंगा । पक्खीस या गरुले वेणुदेवे, णिव्वाणवादीणिह, णायपुत्ते ॥२१॥ ३७३. जोहेसु णाए जह वीससेणे, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु ।
खत्तीण सेट्ठे जह दंतवक्के, इसीण सेट्ठे तह वद्धमा ||२२|| ३७४. दाणाण सेट्ठ अभयप्पदाणं, सच्चेसु या अणवज्जं वदंति ।
तवेसु या उत्तमबंभचेरं, लोगुत्तमे समणे नायपुत्ते ||२३||
३७५. ठितीण सेट्ठा लवसत्तमा वा सभा सुधम्मा व सभाण सेट्ठा । निव्वाण सेट्ठा जह सव्वधम्मा, ण णायपुत्ता परमत्थि जाणी ||२४||
३६६. जैसे लम्बे पर्वतों में निषधपर्वत श्रेष्ठ है तथा वलयाकार (चूड़ी के आकार के) पर्वतों में रुचक पर्वत श्रेष्ठ है, वही उपमा जगत् में सबसे अधिक प्रज्ञावान् भगवान् महावीर की है । प्राज्ञपुरुषों ने मुनियों (के मध्य में श्रमण महावीर को श्रेष्ठ कहा है ।
३६७. भगवान महावीर ने अनुत्तर (संसारतारक सर्वोत्तम ) धर्म का उपदेश देकर सर्वोत्तम श्रेष्ठ ध्यान - शुक्लध्यान की साधना की (भगवान् का ) वह ध्यान अत्यन्त शुक्ल वस्तुओं के समान शुक्ल था, दोषरहित शुक्ल था, शंख और चन्द्रमा (आदि शुद्ध खेत पदार्थों) के समान एकान्त शुद्ध श्वेत ( शुक्ल ) था ।
३६८. महर्षि महावीर ने ( विशिष्ट क्षायिक) ज्ञान, शील (चारित) और दर्शन ( के बल) से समस्त (ज्ञानावरणीय आदि ) कर्मों का विशोधन ( सर्वथा क्षय) करके सर्वोत्तम (अनुत्तर लोकाग्रभाग में स्थित) सादि अनन्त परम सिद्धि (मुक्ति) प्राप्त की ।
३६९. जैसे वृक्षों में (देवकुरुक्षेत्र स्थित ) शाल्मली ( सेमर ) वृक्ष ज्ञात ( जगत् - प्रसिद्ध ) है, जहाँ