Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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महावीरत्थवो (वीरत्थुइ) : छछु अज्झयणं
महावीरस्तव (वीरस्तुति) : छठा अध्ययन भगवान महावीर के सम्बन्ध में जिज्ञासा
३५२. पुच्छिसु णं समणा माहणा य, अगारिणो य परतित्थिया य । . से के इणेगंतहिय धम्ममाहु, अणेलिसं साधुसमिक्खयाए ॥१॥ ३५३. कहं च णाणं कह दंसणं से, सीलं कहं नातसुतस्स आसी।
जाणासि णं भिक्खु जहातहेणं, अहासुतं बूहि जहा णिसंतं ॥२॥ ३५२. श्रमण और ब्राह्मण (माहन), क्षत्रिय आदि सद्गृस्थ (अगारी) और अन्यतीथिक (शाक्य आदि) ने पूछा कि वह कौन है, जिसने एकान्त हितरूप अनुपम धर्म; अच्छी तरह सोच-विचार कर कहा है ?
३५३. उन ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर का ज्ञान कैसा था? उनका दर्शन कैसा था ? तथा उनका शील (यम-नियम का आचरण) किस प्रकार का था ? हे मुनिपुङ्गव ! आप इसे यथार्थ रूप से जानते हैं, (इसलिए) जैसा आपने सुना है, जैसा निश्चय किया है, (वैसा) हमें कहिए।
विवेचन-भगवान महावीर के उत्तम गुणों के सम्बन्ध में जिज्ञासा-प्रस्तुत सूत्रगाथाद्वय (३५२-३५३) में श्री जम्बूस्वामी द्वारा अपने गुरुदेव श्री सुधर्मास्वामी से भगवान महावीर स्वामी के उत्तमोत्तम गुणों एवं आदर्शों के सम्बन्ध में सविनय पूछे गए प्रश्न अंकित है। मुख्यतया चार प्रश्न उठाए गए हैं-(१) एकान्तहितकर अनुपम धर्म के सम्प्ररूपक कौन हैं ? (२) ज्ञातपुत्र भगवान महावीर का ज्ञान कैसा था ? (३) उनका दर्शन कैसा था? और (४) उनका शील कैसा था ?
जिज्ञासाओं के स्रोत-श्री जम्बूस्वामी स्वयं तो भगवान महावीर स्वामी के आदर्श जीवन के सम्बन्ध में जानते ही थे, फिर उनके द्वारा ऐसो जिज्ञासाएँ प्रस्तुत करने का क्या अर्थ है ? इसी के समाधानार्थ शास्त्रकार यहाँ स्पष्ट करते हैं-'पुच्छिसु णं समणा माहणा य, अगारिणो या परतित्थिआ य।' आशय यह है कि जम्बूस्वामी से श्रमण भगवान महावीर की वाणी सुनी होगी, उस पर से कुछ मुमुक्षु श्रमणों आदि ने जम्बूस्वामी से ऐसे प्रश्न किये होंगे, तभी उन्होंने श्री सुधर्मास्वामी के समक्ष ये जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की हैं । इसलिए इन जिज्ञासाओं के स्रोत श्रमण, ब्राह्मण आदि थे।
१ सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति पत्रांक १४२ के आधार पर