Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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गाचा । ३५२ से ३५३
३१६ पाठान्तर एवं कठिन शब्दों की व्याख्या-साधुसमिक्खयाए=वत्तिकार के अनुसार-(साधु) सून्दररूप से समीक्षा-पदार्थ के यथार्थ तत्त्व (स्वरूप) का निश्चय करके अथवा समत्वदृष्टिपूर्वक। चूर्णिकार सम्मत पाठान्तर है-साधुसमिक्खदाए अर्थ किया है - केवलज्ञान के प्रकाश में सम्यक् रूप से देखकर । 'कहं च णाणं'=वत्तिकार ने इसके दो अर्थ किये हैं-(१) भगवान ने इतना विशुद्धज्ञान कहाँ से या कैसे प्राप्त किया था ? (२) भगवान महावीर का ज्ञान-विशेष अर्थ को प्रकाशित करने वाला बोध-कैसा था ? 'कहं दसणं से ?' वृत्तिकार ने इसके भी दो अर्थ किये हैं- (१) विश्व के समस्त चराचर या सजीव
को देखने या उनकी यथार्थ वस्तु स्थिति पर विचार करने की उनकी दृष्टि (दर्शन) कैसी थी? (२) उनका दर्शन-सामान्य रूप से अर्थ को प्रकाशित करने वाला बोध-कैसा था ? सीलंयम(महाव्रत), नियम-(समिति-गुप्ति आदि के पोषक नियम, त्याग, तप आदि) रूप शील-आचार नातसुतस्स =ज्ञातवंशीय क्षत्रियों के पुत्र का।' अगारिणो वृत्तिकार के अनुसार-क्षत्रिय आदि गृहस्थ। चूर्णिकार के अनुसार-'अकारिणस्तु भत्रिय-विट्-शूद्राः' अकारी का अर्थ है-क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । माहणा=वृत्तिकार के अनुसार-ब्राह्मण-ब्रह्मचर्यादि अनुष्ठान में रत। चूर्णिकार के अनुसार-'माहणा-श्रावका ब्राह्मणजातीया वा' अर्थात् -माहन का अर्थ है-श्रावक या ब्राह्मणजातीय। अनेक गुणों से विभूषित भगवान महावीर की महिमा
३५४. खेयण्णए से कुसले आसुपने , अणंतणाणी य अणंतदंसी।
जसंसियो चक्खुपहे ठियस्स, जाणाहि धम्मं च धिइं च पेहा ॥ ३ ॥ ३५५. उड्डअहे य तिरि दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा।
से णिच्चणिच्चेहि समिक्ख पण्णे, दीवे व धम्मं समियं उदाहु ॥ ४ ॥ ३५६. से सव्वदंसी अभिभूय णाणो, निरामगंधे धिइमं ठितप्पा । - अणुत्तरे सव्वजगंसि विज्ज, गंथा अतीते अभए अणाऊ ॥ ५॥ ३५७. से भूतिपण्णे अणिएयचारी, ओहंतरे धीरे अणंतचक्खू ।
अणुत्तरं तप्पति सूरिए वा, वइरोणिवे व तमं पगासे ।। ६ ।। ३५८. अणुत्तरं धम्ममिणं, जिणाणं णेता मुणी कासवे आसुपण्णे ।
इंदे व देवाण महाणुभावे, सहस्सनेता दिवि णं विसिट्ठ ॥७॥
२ वैशाली (बसाढ़ जि० मुजफ्फरपुर) के जैथरिया भूमिहार 'ज्ञात' ही है। आज भी उस प्रदेश के लाखों जैथरियाकाश्यप गोत्री हैं । ज्ञातृवंशीय क्षत्रिय लिच्छवी गणतंत्रियों की शाखा थे।
-अर्थागम (हिन्दी) प्रथम खण्ड पृ० १६३ ३ (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पनांक १४२-१४३
(ख) सूयगडंगसुत्त चूणि (मूलपाठ-टिप्पण) पृ० ६३ ४ सूयगडंगसुत्त कतिपय विशिष्ट टिप्पण (जम्बूविजय जी सम्पादित) पृ० ३६५ ५ शीलांक टीका में-"खेयण्णए से कसले महेसी" पाठान्तर हैं।