Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्य उद्देशक : गाथा २४२ से २४६
यह तो बहुत ही असम्भव-सा है कि साधक के साथ स्त्रियों का बिलकुल ही सम्पर्क न हो, भिक्षाचरी, उपाश्रय-निवास, प्रवचन आदि अवसरों पर स्त्री सम्पर्क होता है, परन्तु जो साधक सावधान एवं मोक्ष मार्ग की साधना में दृढ़ रहता है, वह स्त्री सम्पर्क होने पर भी स्त्रियों के प्रति मोह, आसक्ति, मन में काम-लालसा, कामोत्तेजना या कामोत्तेजक वस्त्राभूषणादि या शृगार-साज-सज्जा आदि को अनर्थकर तथा परिणाम में कटुफल वाले समझकर इनसे बिलकुल दूर रहता है, स्त्री-संगरूप उपसर्ग के आते ही तुरन्त सावधान होकर उससे पीठ फेर लेता है, मन में जरा भी काम सम्बन्धी विकार नहीं लाता, वह स्त्रीसंगरूप उपसर्ग को तो पार कर ही जाता है, अन्य अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्गों पर भी विजय प्राप्त कर लेता है। ऐसे उपसर्ग विजेता साधक किसी भी प्रकार के उपसर्गों के समय न तो क्षुब्ध होते हैं; न ही उन्हें अपने पर हावी होने देते हैं, न ही अपने धर्मध्यान या चित्त समाधि का त्याग करते हैं, बल्कि वे साधक सुसमाधि में स्थिर रहते हैं । यही बात शास्त्रकार करते हैं -"जेहिं नारीण"ठिया सुसमाहिए ।२८
कठिन शब्दों को व्याख्या-पूयणा=वृत्तिकार के मतानुसार-पूजना=कामविभूषा, चूर्णिकार के अनुसार-'यूयणा=शरीर पूजना, अथवा पूतनाः- "पातयन्ति धर्मात् पासयंति वा चारित्रमिति पूतनाःपूतीकुर्वन्तीत्यर्थः' अर्थात्-पूयणा के तीन अर्थ फलित होते हैं-(१) शरीर पूजना-शारीरिक मण्डन विभूषा, अथवा (२) पूतना जो धर्म से पतित करती हो, वह पूतना है, अथवा (३) जो चारित्र को गन्दा (मलिन) करती हो वह पूतना है । पिट्ठतो कता=परित्यक्ते त्यर्थः, परित्याग कर दिया है ।२६ उपसर्ग-विजेता साधु : कौन और कैसे?
२४२. एते ओघं तरिस्संति समुदं व ववहारिणो ।
जत्थ पाणा विसण्णा सं कच्चंती सयकम्मुणा ।। १८ ।। २४३. तं च भिवखू परिण्णाय सुन्वते समिते चरे ।
मुसावायं विवज्जेज्जाऽदिण्णादाणाइ वोसिरे ॥ १६ ॥ २४४. उड्ढमहे तिरियं वा जे केई तस-थावरा। ___सव्वत्थ विरतिं कुज्जा संति निव्वागमाहितं ॥ २० ।। २४५. इमं च धम्ममादाय कासवेण पवेदितं ।
कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स अगिलाए समाहिते ।। २१ ॥ २४६. संखाय पेसलं धम्म दिमिं परिनिव्वुडे ।
उवसग्गे नियामित्ता आमोक्खाए परिव्वएज्जासि ।। २२ ॥ त्ति बेमि ।।
२८ (क) सूत्रकृतांग शीलांक वत्ति पत्रांक ६६ के आधार पर
(ख) सूत्रकृतांग अमरसुखबोधिनी व्याख्या १० ४६५.४६६ २६ (क) सूत्रकृतांग शोलांक वृत्ति पत्रांक ६६
(ख) सूयगडंग चूणि (मू० पा० टिप्पण) पृ० ४३