Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
सूत्रकृतांग-प्रथम अध्ययन-समय १६ प्रकार के उत्पाद दोष ये हैं, जो साधु की असावधानी एवं रसलोलुपता से उसके स्वयं के निमित्त से लगते हैं(१) धात्री दोष,
(६) चिकित्सा दोष, (११) पूर्व-पश्चात् संस्तव दोष, (२) दूति दोय या दौत्य दोष, (७) क्रोध दोष,
(१२) विद्या दोष, (३) निमित्त दोष (८) मान दोष,
(१३) मन्त्र दोष, (४) आजीव दोष। (६) माया दोष,
(१४) चूर्ण दोष, (५) वनीमक दोष, (१०) लोभ दोष, (१५) योग दोष (१६) मूलकर्म दोष ।
ये दोनों प्रकार के दोष आहार की गवेषणा करते समय साधु की असावधानी से लगते हैं । आहार लेते समय पूछताछ, खोज-बीन करके लेना गवेषणा है, यहाँ 'कडेसु घासमेसेज्जा' कहकर गृहस्थ द्वारा अपने लिए कृत चतुर्विध आहारों में से ग्राह्य आहार की एषणा करनी आवश्यक बतायी है ।
इसके पश्चात् 'दत्त सेणं चरे' इस वाक्य से शास्त्रकार ने ग्रहणषणा के १० दोषों से बचने का संकेत किया है। वे इस प्रकार हैं(१) शंकित,
(४) पिहित, (७) उन्मिश्र दोष (२) म्रक्षित,
(५) संहृत,
(८) अपरिणत दोष, (३) निक्षिप्त,
(६) दायक दोष, (६) लिप्त दोष (१०) छदित दोष । इसके अनन्तर तीन विवेक-सूत्र परिभौगैषणा या ग्रासैषणा के ५ दोषों के सम्बन्ध में बताये हैं(१) अगिद्धो, (२) विप्पमुक्को, (३) ओमाणं परिवज्जए ।
५ आहार ग्रहण-सेवन आदि के ४७ दोष इस प्रकार हैं१६. उद्गम दोष
आहाकम्मुद्दे सिय पूइकम्मे य मीसजाए य । ठवणा पाहुडियाए पाओअरकीयपामिच्चे ॥१॥ परियट्टिए अभिहडे उब्भिन्ने मालोहडे इय ।
आच्छिज्जे अणिसिट्ठे अज्झोवरए य सोलसमे ।।२।। १६ उत्पाद दोष
धाई दुई निमित्त आजीव-वणीमगे तिगिच्छाय । कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एए ॥१॥ पूविपच्छासंस्थवविज्जामंते य चुण्णजोगे य ।
उप्पायणाइदोसा सोलसमे मूलकम्मे ॥२॥ १० एषणा (ग्रहणषणा) दोष- संकिय-मक्खिय-निपिखत्त-पिहिय-साहरिय-दायगुम्मीसे ।
अपरिणय-लिसि-छड्डिय एषणदोसा दस हवंति ॥१॥ ५ परिभोगषणा दोष
(१) इंगाले, (२) धूमे, (३) संजोयणा; (४) पमाणे, (५) कारणे चेव ।
पंच एए हवंति घासेसण-दोसा ॥ नोट-इनका समस्त वर्णन दशवकालिक, पिण्डनियुक्ति, आचारांग आदि से जान लेना चाहिए। -सम्पादक