Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम उद्देशक । गाथा १३ से १४ जडात्मा २५ तत्त्वों का ज्ञान भी कैसे कर सकेगा? उस आत्मा में पूर्वजन्मों का स्मरण आदि क्रिया भी कैसे होगी ?५° अतः अकारकवाद युक्ति, प्रमाण एवं अनुभव से विरुद्ध है। दोनो बादों को मानने वालों की दुर्दशा
___इस गाथा के उत्तरार्द्ध में शास्त्रकार ने पूर्वोक्त दोनों मिथ्यावादों को मानकर चलने वालों की दुर्दशा का संक्षेप में प्रतिपादन किया है-'तमाओ ते तमं जंति मंदा आरंभणिस्सिया' अर्थात् वे (तज्जीवतच्छरीरवादी) विवेकमूढ़ मंदमति नास्तिक बनकर आत्मा को शुभाशुभकर्म के फलानुसार परलोकगामी नहीं मानते, इस प्रकार उनकी बुद्धि पर मिथ्यात्व और अज्ञान का गहरा पर्दा पड़ जाने के कारण वे अज्ञानान्धकार में तो पहले से ही पड़े होते हैं । अब वे यह सोचकर कि हम आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नरक पुण्य-पाप आदि नहीं मानते तो हमें क्यों पाप-कर्म का बन्ध होगा, और क्यों उसके फलस्वरूप दुर्गति मिलेगी? फलतः बेखटके वे मनमाने हिंसा, झूठ, चोरी, ठगी, आदि पापकर्म में रत हो जाते हैं, इस प्रकार ज्ञानावरणीयादि कर्मसञ्चयवश वे और अधिक गाढ़ अज्ञानान्धकार में पड़ जाते हैं। ...
जैसे कोई व्यक्ति विष को मारक न माने-समझे या उसके दुष्प्रभाव से अनभिज्ञ रहकर विष खा ले तो क्या विष अपना प्रभाव नहीं दिखायेगा? अवश्य दिखाएगा। इसी प्रकार कोई अनूभवसिद्ध सत्य बात को न मानकर उसके परिणाम से अनभिज्ञ रहे और अपने मिथ्या सिद्धान्तों को दुराग्रहवश पकड़े रखे, तदनुसार हिंसादि दुष्कर्मों में प्रवृत्त हो जाए तो क्या वह मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय आदि के प्रभाव
ले पापकर्मबन्ध से बच जाएगा? क्या उसे वे पापकर्मबन्ध नरकादि घोर अन्धकाररूप अपना फल नहीं देंगे? स्थूल दृष्टि से देखें तो वे एक नरकादि यातना स्थान में सद्-असद्-विवेक से भ्रष्ट होकर फिर उससे भी भयंकर गाढ़ान्धकार वाले नरक में जाते हैं ।
इस प्रकार अकारकवादियों की भी दुर्दशा होती है। वे भी मिथ्याग्रहवश अपनी मिथ्यामान्यता का पल्ला पकड़कर सत्य सिद्धान्त को सुना-अनसुना करके चलते हैं । फलतः वे मिथ्यात्ववश नाना प्रकार के हिंसादि कार्यों को निःशंक होकर करते रहते हैं। केवल २५ तत्त्वों का ज्ञाता होने से मुक्त हो जाने का झूठा आश्वासन अपने आपको देते रहते हैं । क्या इससे मिथ्यात्व और हिंसादि अविरति के कारण पापकर्मबन्धन से तथा उनके फलस्वरूप नरकादि गतियों से वे बच सकेंगे? कदापि नहीं। यही कारण है कि वे यहाँ भी मिथ्यात्व एवं अज्ञान के गाढ अंधकार में डबे रहते हैं, और परलोक में इससे भी बढकर गाढ अन्धकार में निमग्न होते हैं।"
माता पा
५० (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक २२ । (ख) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा ३४
को वेएइ ? अकयं, कयनासो, पंचहा गई नत्थि ।
देवमणुस्सगयागई जाइसरणाइयाणं च ॥ ५१ सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति पत्रांक-२२, २३