Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सुत्रकृतांग-प्रथम अध्ययन-सम्म
५८. जैसे चारों ओर से जल प्रविष्ट होने वाली (छिद्रयुक्त) नौका पर चढ़कर जन्मान्ध व्यक्ति पार जाना चाहता है, परन्तु वह बीच में ही जल में डूब जाता है।
५६. इसी प्रकार कई मिथ्यादृष्टि, अनार्य श्रमण संसार सागर से पार जाना चाहते हैं, लेकिन वे संसार में ही बार-बार पर्यटन करते रहते हैं ।
-इस प्रकार मैं कहता हूँ।
विवेचन-विभिन्न अन्यदृष्टियों को दशा-५७ से लेकर ५६ तक की तीन गाथाओं में बताये गये विभिन्न एकान्त दर्शनों, वादों, दृष्टियों को सत्य मानकर उनकी शरण लेकर अन्धविश्वासपूर्वक चलने वाले व्यक्तियों की दुर्दशा का दो तरह से चित्रण किया गया है-(१) अपने दर्शन की शरण लेकर, कर्म बन्धन से निश्चिन्त होकर इन्द्रिय-सुखोपभोग एवं मान-बड़ाई में आसक्त वे लोग निश्शंक भाव से पापाचरण करते रहते हैं, (२) जैसे सच्छिद्र नौका में बैठा हुआ जन्मान्ध अधबीच में ही पानी में डूबता है, वैसे ही संसार सागर पार होने की आशा से मिथ्यात्व-सबिरति आदि छिद्रों के कारण कर्म जल प्रविष्ट हो जाने वाली मिथ्यादृष्टि युक्त मत नौका में बैठे हुए मत-मोहान्ध व्यक्ति बीच में ही डूब जाते हैं।"
कठिन शब्दों की व्याख्या-सातागारवणिस्सिया-सुखशीलता में आसक्त । सरणं ति मण्णमाणा-हमारा यही दर्शन संसार से उद्धार करने में समर्थ है, इसलिए यही हमारा शरण-रक्षक होगा, यह मानकर। चूर्णिकार-हियंति मण्णमाणा तु सेवंती अहियं जणा'-पाठान्तर मानकर इसकी व्याख्या करते हैं-'इसी से हमारा हित होगा' इस प्रकार के इस अहितकर को हितकर मानते हए सेवन करते हैं। आसाविणीं णावंवृत्तिकार के अनुसार-जिसमें चारों और से पानी आता है, ऐसी सच्छिद्र नौका आस्रविणी कहलाती है। चूर्णिकार के अनुसार, जिसमें चारों ओर से पानी आकर गिरता है, इस कारण जिसके कोठे (प्रकोष्ठ) टूट गये हैं, या कोठे बनाये ही नहीं गये हैं ऐसी नाव । अन्तरा य विसीयति-बार-बार चर्तुगतिक परिभ्रमण रूप संसार में ही पर्यटन करते हैं।
॥ द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥
३१ (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ३६
(ख) सूत्रकृतांग अमरसुखबोधिनी व्याख्या पृ० १९२ से १९६ तक ३२ (क) सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति पत्रांक ३६-४०
(ख) सूयगडंग सुत्तं चूणि (मूलपाठ टिप्पण), पृ० १०