Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२५
.
प्रथम उद्देसक गाथा ११ से १२
मंदा-वे एकात्मवादी मन्दबुद्धि इसलिए हैं कि युक्ति एवं विचार से रहित एकान्त एकात्मवाद स्वीकार करते हैं। एकान्त एकात्मवाद युक्तिहीन है, सारे विश्व में एक ही आत्मा को मानने पर निम्नलिखित आपत्तियां आती हैं
(१) एक के द्वारा किये गए शुभ या अशुभकर्म का फल दूसरे सभी को भोगना पड़ेगा जो कि अनुचित व अयुक्तिक है।
(२) एक के कर्मबन्धन होने पर सभी कर्मबन्धन से बद्ध और एक के कर्मबन्धन से मुक्त होने पर सभी कर्मबन्धन से मुक्त होंगे। इस प्रकार की अव्यवस्था हो जाएगी कि जो जीव मुक्त है, वह बन्धन में पड़ जाएगा और जो बन्धन में पड़ा है, वह मुक्त हो जाएगा। इस प्रकार बन्ध और मोक्ष की अव्यवस्था हो जायेगी।
(३) देवदत्त का ज्ञान यज्ञदत्त को होना चाहिए तथा एक के जन्म लेने, मरने या किसी कार्य में प्रवृत्त होने पर सभी को जन्म लेना, मरना या उस कार्य में प्रवृत्त होना चाहिए। परन्तु ऐसा कदापि होना सम्भव नहीं है।
(४) जड़ और चेतन सभी में एक आत्मा मानने पर आत्मा का चैतन्य या ज्ञान गुण जड़ में भी आ जाएगा, जो कि असम्भव है।
' (५) जिसे शास्त्र का उपदेश दिया जाता है वह और शास्त्र का उपदेष्टा, दोनों में भेद न होने के कारण शास्त्ररचना भी न हो सकेगी।
इसीलिए शास्त्रकार ने कहा है-“एगे किच्चा सयं पावं तिव्वं दुक्खं नियच्छई"-आशय यह है-संसार में यह प्रत्यक्ष देखा जाता है कि जो पापकर्म करता है, उस अकेले को ही उसके फलस्वरूप तीव्र दुःख प्राप्त होता है, दूसरे को नहीं । किन्तु यह एकात्मवाद मानने पर बन नहीं सकता।' तज्जीव तच्छरीरवाद
११. पत्तेयं कसिणे आया जे बाला जे य पंडिता।
संति पेच्चा ण ते संति णत्थि सत्तोववाइया ॥११॥ १२. पत्थि पुण्णे व पावे वा णत्थि लोए इतो परे।
सरीरस्स विणासेणं विणासो होति देहिणो ॥१२॥ ११. जो बाल (अज्ञानी) हैं और जो पण्डित हैं, उन प्रत्येक (सब) की आत्माएँ पृथक-पृथक हैं । मरने के पश्चात् वे (आत्माएँ) नहीं रहतीं। परलोकगामी कोई आत्मा नहीं है।
१२. (इस वाद के अनुसार) पुण्य अथवा पाप नहीं है, इस लोक से पर (आगे) कोई दूसरा लोक नहीं है । देह का विनाश होते ही देही (आत्मा) का विनाश हो जाता है ।
४१ (क) एकात्मवाद से सम्बन्धित विशेष वर्णन के लिए देखिए
(ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक १९ के आधार पर
-द्वितीय श्रुतस्कन्ध सूत्र ८३३