________________
धर्म - ऋग
(१) शासन नायक वीतराग परमात्मा श्री महावीर प्रभु का मैं ऋणी हूं । भवोभव भटकते ए पुण्योदय से इस भव में आपके वचनों का पठन, वांचन व लेखन सुलभ हुवा है अतः मुक्त ऋणी हूं ।
(२) ग्रन्थ के कर्ता श्री मुनि सुन्दरसूरीश्वरजी तथा उनके गतानुगत पट्टधर - श्री विजयानन्दसूरिजी के शिष्य विद्यानुरागी पंजाब केसरी स्व० आचार्य श्री विजयवल्लभसूरिजी का मैं ऋणी हूं जिनके कर कमलों द्वारा स्थापित श्री आत्मानंद जैन गुरुकुल गुजरांवाला (पंजाब) में मैंने शिक्षा प्राप्त की थी। जीवन मैं जो भी है वह सब उन्हीं गुरुदेव की देन है ।
(३) स्नेहमयी स्वर्गीया दादीजी श्री हगामबाईजी तथा चिरायु अपेक्षित पूज्यवर पिताजी श्री श्रीलालजी व माताजी सरदारबाई का ऋणी हूं जिन्होंने बाल्यकाल से आज पर्यन्त मेरी धर्म भावना का पोषण किया है ।